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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अत्म-कथा आया, तो सामाजिकों में अपार श्रौत्सुक्य देख कर गद्गद् हो गया। मेरा अभिनय बहुत सफल रहा। जर्जर उत्तोलन करने के बाद मैं अत्यन्त सन्तुष्ट होकर नेपथ्य-शाला में लौट गया । निपुणिका पहले से ही पुष्पोपहार लेकर वहाँ मौजूद थी। मेरे इशारे पर एक बार फिर नगाड़े पर चोट पड़ी और निपुणिका पुष्पोपहार की प्रणामांजलि लेकर रंगभूमि में अवतीर्ण हुई। यमनिका ( पर्दै ) के पीछे से मैं उसके अध नृत्त को देख रहा था। वीणा, वेणु और मुरज के साथ कांस्य- ताल झनझना रहे थे और निपुणिका के नूपुर-क्वणन को और भी गम्भीर तथा और भी मनोहारी बना रहे थे। एकाएक बालों का बजना रुक गया और उनकी मधुर ध्वनि के अनुरणन की पृष्ठभूमि में नियुणिका का कोमल कंठ सुनाई पड़ा। मैं आज निपुणिका का कौशल देखकर विस्मय-मुग्ध हो गया था । गान समाप्त होते ही बाजों के साथ नूपुर के क्वणन की ध्वनि सुनाई पड़ी। बहुत ही सुकु- भार भंगी से निपुणिका ने अपना उपहार देवताओं को समर्पित किया और अभिराम-संचार के साथ धीरे-धीरे नेपथ्य-भूमि की ओर लौट अाई । क्षण-भर में मेरे मानस-समुद्र में विक्षोभ का तूफ़ान उठा और शान्त हो गया। मैं सदा अपने को सम्हाल सकने में समर्थ रहा हूँ। इस बात का मुझे अभिमान है। मैंने एक बार आग्रह-भरी आवाज़ में पुकारा---'निउनिया !: निपुणिक विठक कर खड़ी हो गई... उसका बाँ। हाथ कटिदेश पर न्यस्त था, कंकण कलाई पर सरक अआया था, दाहिना हाथ शिथिल श्याम लता के समान झूल पड़ा था, उसकी कमनीय देह-लता नयभंगी से ज़र' झुक गई थी, मुखमंडल अमबिन्दुओं से परिपूर्ण था। मुझे मालविकाग्नि मित्र' की मालविका याद आ गई । मैंने हँसते हुए कालिदास का वह श्लोक पढ़