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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा हाय, इससे बढ़ कर ‘त्रिजगन्मनोज्ञा’ शोभा क्या हो सकती है ? कितनी अन्तःशामक दृष्टि है, कितनी अमृत-स्नायी वाग्घारा है, कैसा उदार चारित्र्य है, कैसी निर्मल भा है ! भुवन मोहिनी के इस रूप को जिसने देखा है उसके लिये कुछ भी देखना बाकी नहीं रह गया । मैं गदगद भाव से भट्टिनी की ओर देखता ही रह गया । भट्टिनी ने अनुयोग के स्वर में कहा-'थके माँदे आए, कुछ प्रसाद भी नहीं लिया। चलो भीतर चलें । मैं चुपचाप मंत्र-मुग्ध की भाँति भट्टिनी के पीछे-पीछे चल पड़ा । कहाँ खिंचा जा रहा हूँ !