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बाण भट्ट की आत्म-कथा

३१२ बाण भट्ट की आत्मकथा का निदेश दिया है क्योंकि शीघ्र ही अभीरराज लोरिक देव ने मुझसे मिलने की इच्छा प्रकट की है । मैं तुरत उठ खड़ा हुआ । उस पूर्व मध्याह्नकाल में ही धरित्री पर अंशुमाली की तीक्ष्ण किरणें उत्तप्त रजत- शलाकात्रों की भाँति बिछ गई थीं, महासरयू के तट-प्रदेश को घेर कर दूर तक फैले हुए सै कत-पुलिन में दारुण ताप संचरित हो गया था, दूर- स्थित अश्वत्थ वृक्ष पर सुनाई देनेवाले वन्य पावत के घूत्कार के सिवा कहीं से भी कोई शब्द नहीं आ रहा था, तृषार्त कलास (गिरगिट) शर-मूल छोड़कर जल की संधान में व्यर्थ ही झुलस रहे थे, अत्यन्त क्षीण धारा महासरयू पारद-रेखा की भाँति दिखाई दे रही थी, धूसर आकाश-मण्डल ताण्डव-क्लान्त धूर्जट की भस्माच्छादित जटा की भाँति दिगन्त तक फैला हुआ था और वायुमण्डल के प्रत्येक स्तर में झंझा व । पूर्वाभास स्तब्ध रहकर विचित्र अाशंका उत्पन्न कर रहा था । स्नानादि से निवृत्त होकर जब मैं लोरिकदेव की सभा में पहुँचा तो मध्याह्न का शंख बज चुका था । मुझे बताया गया कि लोरिकदेव ने भोजनोपरान्त अपराह्नकाल में अपने विश्राम-कक्ष में ही मुझसे मिलने का प्रसाद प्रकट किया है। अपराह्नकाल में जब लोरिक दैव के विश्राम-कक्ष को पहुँचा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुअा। मैंने मन ही मन सोचा था लोरिकदेव के प्रसाद के विशाल बहि:प्रकोष्ठ में शुक-सारिका, लाव-तित्तिर, कुक्कुट-मयूर आदि पक्षियों का कलरव गूंज रहा होगा, गोमयोपलिप्त अजिरभूमि के सामने वाले द्वार पर मालती माला लटक रही होगी, पाश्र्ववर्ती वलि- वेदिकाओं के ऊपर अभिराम शालभंजिकाएँ भ्यस्त या उत्कीर्ण होगी, शयनकक्ष में स्यंदन, देवदारु या हरिचंदन की शय्या और असित की प्रतिशयिका होंगी जिनमें मांगलिक दन्तपत्र सुशोभित होंगे, शय्या के सिरहाने कुर्चस्थान पर उनके इष्टदेव की मनोहर मूर्ति सजी होगी, पास ही किसी वेदिका पर माल्यचंदन और उपलेपन रखे होंगे, यदि वे