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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्म-कथा दस सहस्र मल्लों की ओर देखकर मौखरियों के दस सैनिकों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए । हम महारानी राज्यश्रो के अकिञ्चन सेवक हैं पर यदि किसी ने अखि दिखाई तो हम उसका उचित उपचार जानते हैं । बड़ी कठिनता से हमारे सैनिक अापके निदेश की प्रतीक्षा में अपने को रोके हुए हैं, नहीं तो जिस समय हमें यह समाचार मिला कि अभीरराज ने कान्यकुब्जेश्वर को अपशब्द कहे हैं उसी समय यहाँ रक्त की नदी बह जाती ! आर्य, हम मंत्र और श्रौषधि से रुद्ध- वर्थ काल सर्प की भाँति समय बिता रहे हैं । अादेश मिले और इन सर्पो की दस लोल जिह्वाएँ भद्र श्वर के मदगर्वित सैन्यों को चाट जाएँ ।' इतना कहकर विग्रहवम ने कोश से अपनी विकराल तलवार खींच ली। और बला ! मेरे मस्तक पर श्रम-बिंदु झलक आए। मैंने विग्रहवर्मा को शान्त करने के उद्देश्य से कहा-“हे नर व्याघ्र ! इस समय छोटी छोटी बातों में शक्ति अपचय करना उचित नहीं हैं । तुमने मौखरिगुरु अाचार्य अबु पाद का शपथ-शप्त पत्र पढ़ा है न १ दुरन्त म्लेच्छ वाहिनी मिरिसकट के उस पार एकत्र हो रही है, मोखरियों के वीर्य की परीक्षा वहीं होगी । तुम इस समय कान्यकुब्जेश्वर के निदेश से निखिल राज- राजेश्वरी देवपुत्र नंदिनी की सेवा में नियुक्त हो जब तक तुम्हें फिर से अन्यत्र नियुक्त नहीं किया जाता तब तक तुम्हारा उनकी रक्षा के अतिरिक्त और कोई कर्तव्य नहीं है । अभीर सैनी इस कार्य में तुम्हारी सहायता ही तो करेगी । देखो नरवीर,श्रर्यावर्त को माहानाश से बचाना है। बड़े उद्देश्य के लिये अपने को बलि दो; बलि देने का ऐसा अव- सर नहीं मिलेगा ।' विग्रहवर्मा ने झुक कर प्रणाम किया । अपनी तल बार को कोश-बद्ध करते वह कहने लगा-‘सब से बड़ा उद्देश्य अन्न दाता की मान-रक्षा है आर्य ! परन्तु तुम्हारा आदेश ही हमारा कर्तव्य हैं । केवल इतना भूल ने जाना कि भट्टिनी की रक्षा का मुख्य भार