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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाणु भट्ट की आत्म-कथा तप के समय भी उत्फुल्ल कुमुद, कुवलय और कल्हार हृदय-शामक शोभा बिखेर रहे थे, विकसित पुण्डरीक के मधुबिंदु जल पर फैल कर मयूर-पुच्छस्थ चंद्राकृति के चिह्न से हृदतल को रंगीन बना रहे थे, अलिकल पटल से सौगंघिक पद्म आच्छादित हो रहे थे, पद्म मधुपान मत्त कलहंस बधुओं के कोलाहल से सारा सरोवर मुनरित हो रहा था, उन्मद सारसों के कल कार से वायु-मण्डल विद्ध हो रहा था, अनेक जलचरों के चटुल संचार से उसकी तरंग-वीचियाँ भी वाचाल हो रही थीं, वायु लहरियों से अलोड़ित सरोवर की तरंगें ऊपर उठ उठ कर टूट जाती थीं और दूर तक उनसे विकोण सीकर-बिंदुओं से वष काल का दृश्य उपस्थित हो जाता था; सार हृद इतना सुगंधित था कि रह- रह कर भ्रम होता था कि कहीं स्नानावतीर्ण वनदेवियों के केश-लग्न पुष्पों की सुगंधि से ही तो इतना अमोद नहीं फैल गया है । श्वेत कुमुदों में श्वेत कलहंस इस प्रकार मिल गए थे कि जब तक वे अपनी प्रियतमाशं को निकट बुलाने के लिए चिल्ला न पड़ते थे तब तक उनकी उपस्थिति की संभावना भी नहीं मालूम पड़ती थी। पाण्डर किशुल्क समूचे सरोवर को आच्छादित करके ऐसी कमनीय शोभा विस्तार कर रहे थे कि छाया रूप में अवतीर्ण चंद्र-मण्डल की तरंगधौत अमृत-धवलमा का भ्रम उत्पन्न हो जाता था, तट के उपान्त भाग में अवस्थित वृक्षों के पल्लव पुट की वायु से वीजित होकर सरोवर की तरंगे इस प्रकार खेल रही थीं मानों जल देवियों के अदृश्य शिशु लीला-पूर्व के तैर रहे हों। इस मनोरम सरोवर को देख कर उत्कंठित का चित भी विश्राम पा सकता है, विरही का हृदय भी शान्त हो सकता है, उन्मत्त का मस्तिष्क भी निर्मल बन सकता है, उकताए हुए मनुष्य को भी शान्ति मिल सकती है। दूर तक फैले हुए वनपनस झुरमुट, धन्य सुननीय-कादम्बरी-कथामुख का पंपासरोवर वर्णना