पृष्ठ:बाणभट्ट की आत्मकथा.pdf/३४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३३४
बाण भट्ट की आत्म-कथा

३३४ बाण भट्ट की आत्म-कथा प्रबल हो गई है ? अब तक भट्टिनी के प्रदेश प्रदेश की मर्यादा पाने योग्य होते ही नहीं थे, उनमें एक प्रकार की दीनता का भाव होता था । इस बार उस में प्रभुता है, मर्यादा-ज्ञान है और निश्चय की भावना है। कितना गंभीर हैं यह कुसुमकोमल हृदय ? वहाँ हो महाकवि, तुमने अपनी कल्पना के नेत्रों से तपोनिरता पार्वती का जो शुभ्रवेश देखा था उसका प्रत्यक्ष विग्रह आज धरती पर विराज रहा है। सुकुमारता और गांभीर्य का ऐसा मणि काञ्चन योग कहाँ मिलेगा ? आज नारायण की कल्याण भावना ने, महादेव की तपोनिष्ठा ने, देव- राज की ईश्वरता ने, सुरगुरु की निर्मल मनीषा ने, मदन देवता की जय-लालसा ने, पार्वती को दृढ़तानिता ने और सरस्वती की संपूर्ण शुचिता ने रूप-परिग्रह किया है। भट्टिनी अाज अर्यावर्त का त्राण करने का संकल्प कर चुकी हैं । लाख-लाख निरीह प्राणियों की ममता ने उनके नवनीत कोमल हृदय को निश्चय ही गला डाला है । ऊपर से थोड़ा भी धुअों नहीं दिखाई दे रहा है पर इस अतल-गंभीर हृदय में निश्चय ही हाहाकार को ज्वाला धधक रही है । भट्टिनी स्थाणवीश्वर जाने को प्रस्तुत हैं ? स्थाणवीश्वर ! यहीं वह भण्ड राजकुल है जहाँ भट्टिनी जैसी सैकड़ों ललनाएँ मनुष्य की पशुता को भेंट चढ़ाई गई हैं। भट्टिनी फिर वहीं जा रही हैं । क्या उनके रोम-रोम से उस लम्पट राजकुल को भस्म कर देने की ज्वाला नहीं निकल रही है कहीं-न-कहीं उस ज्वाला का अस्ति- त्व है अवश्य । भट्टिनी बहुत गंभीर हैं, शायद वे मुझे अधिक उलझनों में डालना भी नहीं चाहतीं, पर वे क्या इस विषय में कुछ भी नहीं सोच रही हैं १ निपुणिका बार-बार लो मरने को ललकारती है वह किस लिये १ क्या उसका यही रहस्य है १ बाण भट्ट इस छोटे राजकुल को कमी क्षमा नहीं करे । कूटनीति की कुटिल भुजंगी भी उसे अपने स्पष्ट कर्तव्य के मार्ग से दूर नहीं हटा सकती । मदमत्त छोटा राजकुल अपने