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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा ३३५ किए को प्रतिफल अवश्य पाएगा । स्थाण्वाश्वर की यात्रा का यह एक मंगलमय परिणाम होगा । भट्टिनी कल वह अवश्य चलेंगी। अब कुछ सोचना नहीं है । वर्षाकाल अाने ही वाला है। जब तक आकाश मेघ-माला से, धरित्री नवीन जल-धारा से, दिग्वलय विद्यु- ल्लताओं से, वायुमण्डल वारि-सीकरों से भर नहीं जाते तभी तक यात्रा निरापद है। शीघ्र ही मालती पुष्पित होगी, कदम्ब केसरित होगा, कुमुद कुमलायित होंगे, मयूर नाचने लगेगे, मेघ और विद्युत अांख- मिचौनी शुरू कर देंगे। उस समय भट्टिनी को शिविकाशों और गो-शकटों पर दौड़ाना उचित नहीं होगा । यह शुभ अवसर है, अभी चलने को तैयार हो जाना चाहिए। निपुणि का के स्वास्थ्य ने हमें चार पांच दिन और रुकने को वाध्य किया । निपुणिका जब कुछ स्वस्थ हो आई तो गंगादशहरा के दिन एक सहस्र अभीर मल्लों ने देवपुत्र-नंदिनी के जय- निनाद से धरती कँपा दी । भट्टिनी की शिविका को घेर दस मौखरि वीरों की कराल तलवारें चमक उठीं । निपुणिका के लिये अलग पालकी सजाई गई। विग्रह वर्मा ने देवपुत्र-नंदिनी के सब से निकट रहने के अपने अाग्रह में विजय पाई । भट्टिनी की विशाल वाहिनी स्थाएवीश्वर को प्रस्थित हुई ।