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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाणु भट्ट की अाम-कथा मनुष्यों का चित्त कोमल होगा, संवेदनशील बनेगा, स्त्री-शक्ति का सम्मान करना सीखेगा | हाय महाकवि, क्यों नहीं तम मेरे चित्त में सचमुच अवतार ग्रहण करते हैं कम से कम भट्टिनी का श्रादेश पालन करने की बुद्धि मुझे दो। ऐसा हो कि मेरी प्रतिभा का अकुण्ठ विलास नर लोक से किन्नर लाल तक फैले हुए एक ही रागात्मक हृदय का परिचय पा सके । भट्ठिनी मेरी काव्य-संपद् पाकर शकिमती होंगी १ हाय, मेरे पास क्या है जो मैं भट्टिनी को न दे सकें । मैंने व्याकुल- गद्गद कंठ से कहा--'देवि, मेरे पास जो कुछ भी है वह तुम्हारा है। अगर कोई काव्य-शक्ति मेरे पास हो तो वह निश्चय ही तुम्हें समर्पित होकर धन्य होगी ।' मेरी बात से भट्टिनी का मुख-मण्डल खिल उठा। उस शोभा और श्री की निर्झरिणी आयताक्षी के स्मय- मान मुख को देखकर अद्धभिन्न केसर पद्म पुष्प की याद बरबस अा गई । उस मंद स्मित ने मेरा मन धवलित कर दिया, चित्त उत्फुल्ल बना डाला और हृदय को अननुभूत रग से रंग दिया। मेरी वाणी कृतार्थ मालूम हुई, मेरी प्रत्येक चेष्टा सफल जान पट्टी, मैं मानों देह-धारण का फल पा गया। मैंने विनय गद्गद स्वर में कहा- ‘देवि, आपके अनुग्रह ने मुझे कुछ अविनीत बना दिया है, मेरी मानव-सुलभ लघिमा मुझे कुछ पूछने को बाध्य कर रही है, प्रभु के प्रसाद का लेशमात्र पाकर भी अधीर प्रकृति मनुष्य चंचल हो उठता है, एक स्थान पर थोड़ी भी अवस्थिति होने से चपल व्यक्ति प्रगल्भ हो जाता है, सद्व्यवहार का कण-मात्र भी मनुष्य को प्रणय- जड़ बना देता है; सो देवि, यदि प्रसाद हो तो मैं जानना चाहता हूँ कि आपके सारे वक्तव्य का फलितार्थ क्या है ? यह कुसुम कोमल शरीर, यह नवनीत मृदुल हृदय, यह वज्रसार हुइ व्रत, यह अपूर्व भक्ति- भाव ये देवलोक में भी दुर्लभ हैं। एक क्षण के लिये भी मैंने इसे गलत नहीं समझा है। मैं भली भाँति जानता हूँ कि जाह्नवी की