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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बारी भट्ट की आत्मकथा एक तुम हो, सब प्रकार से तुम्हारे ऊपर ही मुझे निर्भर रहना है । कुछ ऐसा करना कि महाराजाधिराज के अनुकूल उनका स्वागत हो सके । सुना है, अाज हमारे स्वागत के लिये नगर के श्रेष्ठ कलाविद् जुटाए गए हैं, हमारे तो सर्वस्व तुम्हीं हो । इतना कहकर भट्टिनी ने मेरी ओर विश्वास के साथ देखा । उनकी आँखों में कृतज्ञता के असू थे। इसी समय द्वारी ने आकर समाचार दिया कि कोई सज्जन मुझ से मिलने आए हैं। बाहर आकर देखता हूँ तो धावक है। धावक का वही मस्त चोला, वही सदा-प्रफुल्ल मुख, वही फक्कड़ाना अलबेली छवि । इस भरे अषाढ़ में मालती और जाती कुसुमों का क्या अभाव है १ धावक ने बहुमूल, कराट देश और चुहा में जमकर मालती दाम का व्यवहार किया है । कस्तूरिका-धूपित उत्तरीय के साथ जाती कुसुम के मिलिल अमोद से धावक ने अपने इर्द-गिर्द एक अद्भुत सुगंधित वातावरण तैयार कर लिया था। एक मालती दाम मेरे लिये भी वह लेता आया था । ताम्बूल का तो धावक को रोग है । आज भी उसने निर्दयतापूर्वक ताम्बूल पत्र चबाए थे । मुझे देखकर वह धधाकर मिला । देर तक हम दोनो गाढ़ आलिंगन पाश में बँधे रहे । कुशल चैम के बाद धावक ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा----‘लो गुरु, पौ। बारह हैं तुम्हारे । अाज चारुस्मिता का मयूर नृला है तो कल विद्यु दपांग के मनोहर संगीत । देवपुत्र नन्दिनी ने तो तुम्हें निवध राज्य दे दिया हैं । तो भाग्यवान बंधु ! सुनो, मुझे भी अपने पाश्र्व में बैठने देना; देखो भाई, मित्र को ऐसे समय में भूलने का परिणाम बुरा होता है । धावक की अाँखों में रहस्य-जनक चपलता देखकर मैंने छेड़ा---'क्या परिणाम होता होगा मित्र ! धावक ने ताम्बूल जड्रिम वाणी में कहा-बड़ा कठिन मित्र । किसी मृणाल-कोमल वस्तु में बँधना पड़ता हैं और खेद यह है कि न वह बँधन छूटता ही है न छुड़ाने की इच्छा