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बाण भट्ट की आत्म-कथा

३५० बाण भट्ट की आत्मकथा देखते ही बनता है और भरतमुनि ने नर्तकी के गुण तो मानों उसे देख कर ही लिखे थे ! अर्थ में, रूप में, गुण में, औदार्य में, सौभाग्य में, धैर्य में, वीर्य में वह अपना प्रतिद्वंदी नहीं जानती। जितनी ही मृदुल है उतनी ही मधुर है; जितनी ही स्निग्ध और उतनी ही लीला- वती है। इस नगर का तो वह शृङ्गार है । वस्तुतः उसके नाच को उसकी शोभा ही चमका देती है।' | मैं धावक की मस्ती का रस ले रहा था। और भी जानने की इच्छा से पूछा--भला विद्युदपांग में क्या गुण हैं बंधु' । ‘विद्युदपांगा की बात और है । वह पाती अच्छा है और रूप तो बस, नाम से ही समझ सकते हो । कहते हैं लोल कटाक्ष भी तब तक हृदय बेधक नहीं होते जब तक सौ-पचास हृदयों को बेध नहीं डालते । विद्युदपांशा के पास वैसे ही कटाक्ष हैं ?' भने फिर टोका---'बिंध चुके हों क्या कवि १ इस बार धावक टठा कर हँसा । बोला--कवि बिंधता नहीं मित्र, बेधा करता है । अपांग बाण से नहीं व्यंग्य बाण से ।। " देर तक धावक इसी प्रकार हँसाता-हँसता रहा । मुझे यह कवि कछ विचित्र लगता है, उसकी दुनिया निलित मस्ती की दुनिया है। जिस बात से अन्य कवि द्रवित हो जाते हैं उससे मैं वह अपनी मस्ती का वाद्य नि केलि लेता है । चलते-चलते धावक ने कहा---एक शत से सावधान रहना मित्र, कान्यकुब्ज में किस पर विश्वास न करना, सब तुम्हें कतरना ही चाहेंगे । और वह जो काश वाले भसक को ले आ रहे हो उसे भी समभा देना क बेकार जहाँ तहाँ न भिता फिरे । कान्यकुब्ज विचित्र देश है, यहाँ एक बार यदि ताली बज गई -- -- - - .... - . सुल०---अर्थरूपगुणौदार्य सौभाग्य धैर्य वीमें सम्पन्न । पेशलमधुर स्निग्धा न च विकला चित्रकर्मकुशला च ।। --नाट्य शास्त्र, ३४१४६