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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अाम-कथा ३६६ किया । वशीकरण देखने आए हो १ वशीकरण अपने आपको संपूर्ण रूप से उत्सर्ग करने को कहते हैं । तुमने न तो अपने को निःशे" भाव से दे ही दिया है, ने दूसरे को निःशेष भाव से पाने का ही प्रयः किया है । जाओ, भीतर जाओ, तुम वशीकरण देख सकोगे। जाग्रो--- शीघ्र जाग्रो ।। “अन्तर्गहा में दश भुजा मूर्ति थी । मूर्ति के सामने एक कंकाल शेष तरुण निवात-निष्कम्प प्रदीप की भाँति ध्यान मग्न बैठा था । उसने शायद वर्ष से स्नान नहीं किया था | भोजन भी उसे कभी मिला था या नहीं कौन जाने ! योगी ने कहा-'देखो, वशीकरण चल रहा है। भीतर जाओ, और भीतर ।। जैसे-जैसे हम भीतर प्रवेश करते गए वैसे-वैसे दशभुजा मूर्ति में परिवर्तन दिखाई देने लगा। अन्त में जब हम लोग उस युवक तपस्वी के पास पहुँचे तो मूर्ति एकदम परिवर्तित होकर महामाया रानी बन गई ! अाश्चर्य और भय के मारे मैं चिल्ला उठा । महाराज भी आश्चर्य से हतबुद्धि हो रहे । योगी ने फिर से ललकारा–क्या देखते ही महाराज देवी को प्रणाम करो, तुम्हारे सभी अमंगल दूर होंगे ।' महाराज के सारे शरीर से स्वेद-धारा बह चली । वे कातर चीत्कार करके बैठ गए और धीरे-धीरे धरती पर लोट गए। मैं त्राहि-त्राहि करके चिल्ला उठा। मेरी आवाज़ से युवा तपस्वी का ध्यान भंग हुआ। योगी ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा-‘इरो मत, देवी को प्रणाम करो । मैंने साष्टांग प्रणिपात किया । योगिराज ने युवक का कुछ नाम लेकर पुकारा । वह नाम मैं भूल रहा हूँ। कुछ विकट-सा नाम था। उस शीण युवक तपस्वी ने आश्चर्य के साथ हम दोनों को देखा । योगिराज ने कहा-'वत्स, ये ग्रहवर्मा हैं और ये उनके कञ्चुकी हैं ।' युवक की आँखों में विचित्र प्रेमभाव उद्दीप्त हो उठा । बोला--'अहवर्मा हैं ! अहा !! और धीरे-धीरे महा-