पृष्ठ:बाणभट्ट की आत्मकथा.pdf/३८५

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बीसवाँ उच्छवास मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अपने दुर्भाग्य का अधिक रोना नहीं रोऊँगा । परन्तु मनुष्य का जीवन अदृश्य शक्तियों द्वारा गढ़ा जाता हैं । यदि नियति-नटी का अभिनय अपने वश की बात होती तो मनुष्य की प्रतिज्ञा भी टिकती। कैसे कहूँ कि यह बीसवाँ उच्छास मेरे दुर्भाग्य का रोना नहीं है ? और फिर यह भी वैसे कहूँ कि इसमें मेरे चरम सौभाग्य नहीं प्रकट हुअा है ? वस्तुतः यह मेरा घर में लाभ ही हैं, इसे बढ़ कर क्या लिखें ? महाराजाधिराज ने अपनी नवीन नाटिका भट्टिनी के पास भिजवादी थी । इस नाटिका का नाम रत्नावला है। धावक ने इसी नाटिका की चर्चा की थी । भट्टिनी ने और निपुतिका ने नाटिका को बड़े चाव से पढ़ा । उन्हें वह अच्छी हो लगी होगी क्योंकि एक दिन उन्होंने इच्छा प्रकट की कि यदि महाराज की अनुमति हुई और मुझे प्रसन्नता हो तो इसी नाटिका का अभिनय कर के महाराजाधिराज को दिखाया जाय । मैं इधर कई दिनों से नाना उत्सव में उलझा हुआ था । चारुस्मिता और विद्युदयांगों के नृत्य-गीत से नगर में अंपूर्व मादकता का संचार हो गया था, इसी बीच समाचार अाया कि प्राचार्य भवपाद अा रहे हैं । मौखरियों के ब्राह्मण गुरु की अवाई के समाचार ने जनता को उन्मत्त बना दिया । बौद्ध संन्यासी वसुभूति को इस संवाद से बड़ा कष्ट हुश्री } नगर में यह समाचार फैल गया कि सद्भर्मियों ने भव शर्मा का वध करने का निश्चय कर लिया है । स्थाएवीश्वर में समाचार इस वेग से फैलते हैं जैसे अरण्यानी में दावानल । बड़े विकट समय में जनता में बुद्धि भेद उत्पन्न हो गया । संयोगवश मेरे अग्रज उडु पति भट्ट उसी समय काशी से आ पहुँचे । कुमार कृष्ण वर्धन इन दिनों बड़े