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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बार्ग भट्ट की आत्म-कथा बात कही हैं, जिसका पालन करने में आनाकानी की हो ?' लेकिन अगर मेरी सहायता करने में कोई अनुचित कार्य करना पड़े ?' | देख नि उनिया, मैंने अभी प्रत्यक्ष देखा है कि तु जिसके यहाँ अाश्रय पाए हुई है, उसे छोड़कर तुझे किसी और की सहायता प्राव- श्यक नहीं है, फिर भी तू परीक्षा लेने के लिए यह बात कह रही है । मेरा उत्तर स्पष्ट है । साधारणतः लोग जिसे उचित अनुचित के बँधै रास्ते में सोचते हैं, उससे मैं नहीं सोचता। मैं अपनी बुद्धि से अनुचित उचित की विवेचना करता हूँ। मैं माह और लोभवश किये गए समस्त कार्यों को अनुचित मानता हूँ ; परन्तु हमेशा मैं अपने को इन दो रिपु श्रों से बचा नहीं सका हूँ। अाज हो मैने एक महान् संकल्प किया है। मैं नहीं जानना कि इसमें मैं कहाँ तक सफल हूँगा । अनुचित काय से मैं अपने को सदा बचा नहीं पाया हूँ ; पर उचित कर्मों को अवसर ग्राने पर करने के लिए मैंने अपने प्राणों तक की परवा नहीं की है । तू मुझे वह कार्य बता, जिसमें मुझे तेरी सहायता करनी होगी। तू मुझे जानती है, मैं आशा करता हूँ कि मुझे अनुचित कार्य में कभी प्रवृत्त नहीं होने देगी ।। निपुणिका हँसी । बोली-“अब तुम बचने का रास्ता खोज रहे हो । मेरी जैसी स्त्री से तुम उचित कार्य में सहायक बनाने की आशा रखते हो ? तुम बहुत भोले हो ।' | इस बार मैं सचमुच विचलित हुआ; पर फिर भी ज्ञरा दृढ़ता के साथ बोला-“तो ब्रता न, मुझे क्या करना होगा ? निपुण को इस बार और ज़ोर से हँस पड़ी । बोली--‘देव मन्दिर का उद्धार करना है। मैं समझ गया, देव-मन्दिर अर्थात् नारी । यह तो कोई अनुचित कार्य नहीं है। ज़रा हँस के मैंने कहा--'तेरा उद्धार तो महावराह ने