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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बणि भट्ट की अात्म-कथा कथा अरार प्रामाणिक है तो इस समस्या का सुन्दर समाधान हो जाता है । मैंने सोचा था कि इन महत्वपूर्ण सूचनाअों को देने वाली कथा की परीक्षा सावधानी से की जानी चाहिए। इसी समय दीदी का यह पत्र मिला है। कथा का रहस्य इस पत्र से कितना खुलता हैं, यह सह- दयों के विचार के लिए ही छोड़ देता हूँ। अपना मत संक्षेप में ही कह कर समाप्त कर दूंगा।

  • प्रिय व्योम,

छ वर्षों में श्रास्ट्रिया के दक्षिणी भाग में निराशा श्रौर पस्त- हिम्मती की ज़िन्दगी बिता रही हूँ । मने युद्ध के घिनौने समाचार पड़ होंगे लेकिन उसके अगला निधृ ॥ ॐ र प को इम लोः ने नहीं देखा। देखते तो मेरी ही तरह नाम छ । भी नुरु जाति की जय यात्रा के प्रति शंकालु हो जाते है यह अच्छा ही हुआ कि तुमने यह घृणित नर-संहार नहीं देना। यह मनुष्य का नहीं, मनुष्यता के वध का दृश्य था । मैं ६ वर्ष तक साँस रोक कर इस बृावस्था में यह बीभत्स दृश्य देखती रही । लाखों युवक और युवतियाँ, वच्च और बच्चियाँ मर गई और दुर्भाग्य ने ने जाने मुझ वृद्धा को क्यों बचा लिया। तूने ‘बाग भट्ट की आत्मकथा' छपवा दी, यह अच्छा है। किया। पुस्तक रूप में न सही, पत्रिका रूप में छपी कथा को देख सकी हूँ यही क्या कम है । अब मेरे दिन गिने-चुने ही रह गए हैं। इसके पहले 'कथा' के बारे में मैंने जो पत्र लिखा था उसे मत छपाना। मैं अब फिर तुम लोगों के बीच नहीं आ सकेंगी। मैं सचमुच संन्यास ले रही हूँ। मैंने अपने निर्जन वाले का स्थान चुन लिया है । यह मेरा अन्तिम पत्र है । 'आत्मकथा' के बारे में तूने एक बड़ी गलती की है। तूने उसे अपने कथामुख में इस प्रकार प्रदर्शित किया है मानों वह ‘ऑटो-बॉयो- अाफ़ी हो । ले भला ! तुने संस्कृत पढ़ी हैं ऐसी ही मेरी धारणा थी पर यह क्या अनर्थ कर दिया तूने । बाण भट्ट की आत्मशोण नद के