पृष्ठ:बाणभट्ट की आत्मकथा.pdf/४०१

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उपसंहार

  • बाणभट्ट की ग्राम कथा' का इतना ही अंश मिला था । स्पष्ट ही

यह कथा अपूर्ण है। मेरा विचार था कि कथा की जाँच केवल

  • बाण भट्ट को उपलब्ध पुस्तकों से सादृश्य अन्नने वाले अंशों , साथ

तुलना करने तक ही सीमित ! •ख जाय कि मकी भीतरी साहि- त्यिक जाँच भी की इथे । कादम्बरी की शैली है. साथ कथा के शैली में ऊपर ऊपर में बहुत सा दिखता है, आँखों का प्राधान्य इसमें भी अन्य इंद्रियों की अपेक्षा अधिक हैं-रूप का, रंग का, शोभा का, सौंदर्य का इमें भी जमकर वर्ण किया गया है पर इतने ही से साहित्यिक जाँच समाप्त नहीं हो जाती । कथा का ध्यान में पड़ने वाला प्रत्येक सहृदय अनुभव चागा क कथा- ले स सम? कथा लिखना शुरू करता हैं उस समय उसे समूची घटना सात नहीं है । कथा बहुत कुछ अाजकल की डायरी:-शै पर लिगर्छ। * हे । [ जान पड़ता है कि जैसे जैसे घटनाएं अग्रसर होती जाती हैं वैसे वैसे लेक उन्हें लिपिबद्ध करता जा रहा है । जहाँ उसके भावाबेग की गति तीव्र होती है वह वह जमकर लिखता है परन्तु हाँ दुःय का आवेश बढ़ जाता है वहाँ उसकी लेखनी शिथिल हो जाती है । अन्तिम उच्छवासों में तो वह जैसे अपने ही में धीरे धीरे डूब रहा है। मुझे यह बात विचित्र लगी । संस्कृत साहित्य में यह शैली एकदम अपरिचित हैं। मुझे यह बात संदेह-जनक भी मालूम हुई। एक बात और है। कादम्बरी में प्रेम की अभिव्यक्ति में एक प्रकार की दृप्त भावना है परन्तु इस कथा में सर्वत्र प्रेम की व्यैजना गूढ़ अौर अदृप्त भाव से प्रकट हुई है। ऐसा जान पड़ता है कि एक स्त्री-जनाचित लजा सर्वत्र उस अभिव्यक्ति में वाधा दे रही है। सारी कथा में स्त्री-महिमा का बड़ा तर्कपूर्ण और