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बाण भट्ट की आत्म-कथा

मणि भट्ट की आत्म-कथा ३८६ प्रत्येक बालुका कण में वर्तमान है । छिः कैसा निबध है तू, उस अात्मा की आवाज़ तुझे नहीं सुनाई देती १ देख रे, तू पुरुष हैं, तू युवक है, तुझे इतना प्रमाद नहीं शोभते । । | उस भाग्यहन विल्ली ने बच्चों की एक पल्टन खड़ी कर दी है। युद्ध में इतने बम गिर लेकिन इन शैतानों में से एक भी नहीं मरा । मैं कहां तक सम्हालें । वन में एक बार जा चूक हो जाती है वह दो ही जाती है । इस बिल्ली का पोसना भी एक भूल ही थी । तुझसे मेरी एक शिकायत बराबर रही है। तु बात नहीं समझताए । भोले, 'बाग्भट्ट केवल भारत में ही नहीं होते है इस भरलोक मे किन्नरलोक तक एक ही रारात्मक हृदय व्याप्त है । तूने अपनी दीदी को कभी समझने की चेष्टा भी की ! प्रद. आलस्य और क्षिप्रकारिता---तीन दोषों से बच | अब रोज़-रोज़ तेरी दादी इन बातों को समझाने नहीं आएगी । जीवन की एक भूल---क प्रमाद--क असमंजस न जाने क्रचे तक दग्ध करता रदृता है । मेर। ग्राशीद है कि तू इन बातों से बचा रह । दीदी का स्नेह |--के० तो, ‘आत्मकथा' का अर्थ ‘अटो बॉयोग्राफ़ी समझ कर दीदी को दृष्टि में मैंने अनर्थ कर दिया है ! जहाँ तक मेरे प्रसाद अलस्य और अज्ञान का प्रश् है वहाँ तक तो मेरा अपना ही अधिकार है। परन्तु इस पत्र में सिर्फ इतना ही नहीं है। कुछ सहृदयों का भी प्राप्य है । मुझे याद अाया कि दीदी उस दिन बहुत भाव-विह्वल थीं। उन्होंने एक शृगाल की कथा सुनानी चाही थी। उनका विश्वास था कि वह शृगाल बुद्धदेव का समसामयिक था । क्या बाण भट्ट का कोई सम- सामयिक जन्त भी उन्हें मिल गया था ? शोए नद के अनन्त बालुका- कणों में से न जाने किस क ने बाण भट्ट की आत्मा की यह मर्मभेदी पुकार दीदी को सुना दी थी ! हाय, उस वृद्ध हृदय में कितना परि- ताप संचित है ! अस्त्रियवर्ष की अवन-कुमारी देवपुत्र-नंदिनी क्या