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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अात्म-कथा रही थीं कि उन पर मदिरा ने पूरा प्रभाव डाल दिया है। उसने एक बार कुछ स्खलित वाणी में निपुणिका से पूछा और फिर शिथिल भाव से पड़ रही । फिर तो हम दोनों असली अन्तःपुर के भीतर प्रविष्ट हो गए । यहाँ भी कुछ दूर तक बड़े-बड़े वृज्ञ थे; पर आगे चलकर कुब्जक, मल्लिका, कुरण्टेक, नवमालिका आदि के गुल्म थे । यद्यपि चाँदनी में सब कुछ स्पष्ट नहीं दिखाई देता था ; पर गन्ध मे तो स्पष्ट ही पता चल जाता था कि बकुल की वीथी कहाँ है, सिन्धुवार की पाली किस अोर हे श्रौर चम्पकों के गुल्म किधर लगे हुए हैं । विविध प्रकार के पुष्पों के सम्मिलित सौरभ से एक प्रकार का उत्सुकी भावे चित्ते को पर्याकुल कर रहा था । दूर से मृदंग्र, काहल और शंख के नाद सुनाई दे रहा था । प्रेक्षा-दोलायों की घंटा-ध्वनि भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी। मैंने बिना बताए ही समझ लिया कि मदनोत्सव अपने पूरे वेग पर हैं। | हम अभी पुष्प-गुल्मों की वीथी में हो थे कि दो परिचारिका को द्विपदी-खण्ड का गान करते अपनी र अाते देखा । उनके हाथों में ग्राम की मंजरी थी और वे उन्मत्त भाव से नृत्य कर रही थीं । निस्सन्देह वे मधु-पान से मत्त थीं, क्योंकि वे नारी सुलभ मर्यादा- ज्ञान को भूल चुकी थीं । नाचते-नाचते उनके केशपाश शिथिल हो। गए थे, कवरी ( जूडे ) को बाँधने वाली मालती-माला ने-जाने कहीं गिर गई थी, पैरों के नूपुर पटकन-झटकन के वेग को न संभाल सकने के कारण दुगुने ज़ोर से झनझना उठे थे-उनके भीतर और बाहर उन्मत्त प्रमोद की अधिी बह रही थी। उनमें से एक निपुणिका की ओर बढ़ी। जान पड़ता था, उसका नाम भी निपुणिका ही होगा, क्योंकि उसने ‘मित्तिया' कहकर निपुणिका को || तुज०, रक्षाधली, प्रथम अंक