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बाण भट्ट की आत्म-कथा

वाणु भट्ट की अस्मि-कथा पुकारा था । ज़रा नज़दीक आकर उसने निपुत्किा को पुकार कर कहा •--मिलिया, आज तो तेरा ही जय जयकार है। महाराज ने घोषणा की है कि...जो परिचारिका नई बहू को प्रमोद-वन के उत्सव में ले अाया, उसे अपना रत्नहार उपहार देंगे } तो जा न सखी, दूसरी ऐमी बड़भागी कौन है, जो नई बहू को घर से बाहर निकाल सके। वे तो पूजा में लगी हैं । बहुत देखा है बाबा, इस राजकुल में ऐसी पुजारिनें कई गंडा अर चुकी हैं। अरे भला, यह नई चिड़िया कहाँ से फैमा लाई, मिसिया ! इतना कहकर वह मेरी ओर मॅड़ी। निपुणिका ने मेरे कान में धीरे से कहा--क्षीजा है ।' में मतलब समझ गया । ‘क्षीया' कान्यकुब्ज की बोली में मदिरा पी-हुई स्त्री को कहते हैं । निपुणिका ने मुझे साहस बँधाने के लिए यह बात कही थी। इतने में वह स्त्री मेरे पास आ गई। मैंने समझा, अब की भेद खुला चाहता है ! पर उसके मुख से ऐसी गन्ध निकल रही थी कि मेरा मह बरबस दूसरी ओर फिर गया । निपुर्शिका को अवसर मिल गया । बोली-उसे ने छेड़ मित्तिया, गाँव से नई आई है, अभी यहाँ की रीति-नीति नहीं जानती । मितिया ज़ोर से हँस पड़ी । 'दो दिन में सीख जागी लली, न-जाने कितनी अाँखों पर नाचती फिरोगी ! परन्तु उसे ज्यादा फुरसत नहीं थी । अपनी सखी के साथ नाचती हुई वह फिर एक और चली गई । मैंने शान्ति की साँस ली । निपुखिका ने साहस बँधते हुए कहा–'सब क्षीबा हैं, इला !' उस समय दक्षिग-समीर मन्द गति से बह रहा था । वृक्ष-वाटिका के वृक्ष-लता-गुम सभी झूम रहे थे | उनकी मंगे-जैसी लाल-लाल किस- लेय सम्पत्ति ने उनकी सारी शोभा को लाल बना दिया था। उन पर गूजते हुए भौगों की आवाज़ स्खलित वाणी के समान सुनाई दे रही थी और मलयानिल की मृदु-मन्द तरंगों से आहत होकर वे सचमुच ही झूम रहे जान पड़ते थे । शायद मधुमास के मधु-पान से वे भी मत्त