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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की श्रात्म-कथा मन्दिर की ओर आते दिखाई दिए। उन्होंने भक्ति-पूर्वक चण्डी के प्रणाम किया और परिक्रमा कर के प्रांगण में खड़े हो गए। मैंने भ परिक्रमा की और प्रणाम किया। वे मेरी ओर इस प्रकार ताक रहे थे जैसे कुछ जानना चाहते हों । मैं उनके पास गया और प्रणाम किया श्राशीवाद देते हुए उन्होंने बताया कि इसके पहले उन्होंने कभी मुझे नहीं देखा है और जानना चाहते हैं कि मैं कैसे इधर भटक पड़ा हूँ मैंने विनीत भाव से कहा कि मैं परदेशी हूँ, रात को यहीं टिक गय था । वे थोड़ी देर तक हँसते रहे। बोले–“तो आप भाग्यवान हैं। पुजारी बाबा से आपका साक्षात्कार नहीं हुआ है। मैंने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया-पुजारी बाबा को मैं नही जानता है । वे बोले-जानते, तो यहाँ नहीं रुकते ।। मैंने इसका कारण पूछा। फिर वे हँस कर पुजारी बाबा क परिचय देने लगे । वृद्ध काफ़ी सरस जान पड़ते थे। उन्होंने पुजार की वणना वई। रसमयी भाषा में की। बताया कि पुजारी कोई वृद्ध द्रविड़ साधु हैं । उनके काले-काले शरीर में शिराएँ इस प्रकार फूट दिखाई देती हैं, मानो उन्हें जला हुआ खम्भा समझ कर गिरगिट चढ़े हुए हों । सारा शरीर घाव के दागों से इस प्रकार भरा है, माने अलक्ष्मी देवी ने शुभ लक्षणों को उस देह से काट-काट कर अलग क लिया है । वे काफ़ी शौकीन भी हैं । यद्यपि वृद्ध हैं, तो भी कानों में औण्डू-पुष्प का लटकाना नहीं भूलते। वे भक्त भी है, क्योंकि चण्डी मन्दिर की चौखट पर सिर ठुकराते-ठुकराते उनके ललाट में अर्बर हो गया है। वे तान्त्रिक भी हैं; प्रायः ही वृद्धा तीर्थ-यात्रिणियों पः वशीकरण चूर्ण फेका करते हैं। वे प्रयोग-कुशल भी हैं, क्योंकि एध बार गुप्त स्थानों की निधि दिखाने वाला कज्जल लगा कर एक असि स्वो चुके हैं। वे चिकित्सक भी हैं, अपने आगे वाले लम्बे और ऊँचे