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बाण भट्ट की आत्म-कथा

ब्राणु भट्ट की आत्मकथा दतों को समान बनाने के उद्योग में अन्य दाँतों को खो चुके हैं; पर वे ऊँचे दरीत जहाँ के तहाँ हैं। वे विनोदी भी हैं, क्योंकि बालकों के पीछे एक बार ईंट लेकर दौड़ पड़े थे और लुढ़क कर गिर गए थे, जिसमे होंठ कुछ कट गए हैं। उनकी विद्या का भाएडार अक्षय है। समस्त दक्षिण पथ की सम्पत्ति प्राप्त करने की आशा से कपाल में तिलक धारण करते हैं । हरे बघरेड़ के पत्तों के रस में श्मशान का कोयला पीस कर उससे एक सीपी को रंग रखा है। उनका विश्वास है कि उसे देखने-मात्र से धनियों के हृदय में उच्चाटन होता है और वे अपनी सम्पत्ति छोड़ कर चल देते हैं । माया-वशीकरण के ऊपर भी उनका विश्वास हैं। इस कार्य के लिए उन्होंने तालपत्र की एक पोथी पर महावर के रंग से एक लाख बार ‘हुं फट् लिख रखा है और उसे गुग्गुलु-धूम से धूपित किया है। उनका विश्वास है कि इस पोथी को देख कर रमणिय उनकी चेरी हो रहेंगी । अखि यद्यपि एक ही है; पर उसमें एक चिकन शलाका द्वारा नित्य अंजन लगाया करते हैं । यद्यपि रात को रतौंधी के कारण देख नहीं सकते; परन्तु अप्सराओं के अप्रत्याशित आगमन की आशा से रात-भर प्रदीप जलाए रखते हैं । यद्यपि निद्रा में कुम्भकरण के प्रतिद्वन्द्वी हैं; पर स्वप्न में नूपुर-क्वणन निरन्तर सुना करते हैं । यद्यपि बानों से स्पर्धा कर पेड़ पर से कूद कर एक पैर खो चुके हैं; पर मूलस्थानीय उपानहों को यत्नपूर्वक संग्रह कर रखा है। ब्राह्मणों से उनका निसर्ग वैर है, और आप यदि अभी यहाँ से नहीं टल जाते, तो एक टण्टा ज़रूर खड़ा करेंगे । भगवान की इतनी लोकानुकम्पा अवश्य है कि उन्हें कोण, खंज और बधिर बना दिया है, नहीं तो यह स्थाएवीश्वर अब तक उजाड़ हो गया होता ! | वृद्ध के इस वर्णन को सुन कर मैं समझ गया कि निपुणिका ने किस प्रकार इन्हें हाथ किया होगा और अब वह डर क्यों रहीं हैं। परन्तु मुझे कुतूहल ही हुआ। मैंने हँसते हुए कहा--‘ऐसे लोकोत्तर