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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अात्म-कथा है। वे अपनी समस्त सम्पत्ति श्राज़ ही अापके चरणों में समर्पण करना चाहते है यदि आप उनके शिष्य बनना चाहते है तो आपकी वास्तविकता पर प्रकाश करने के लिए आपको चयन करना ज़रूरी है तो वे अभी सेवा करने को उपस्थित हो जायगे ।

मैं जब तक आपकी स्वीकृति का सन्देशा

उनके पास न ले जाऊँगा, तब तक वे अन्न-जल नहीं ग्रहण करेंगे ।

धार्मिक ने एक बार गर्व के साथ अपनी अाश्चर्य-विभव-भूमि शुक्ति की ओर देखा, फिर धीरे-धीरे शान्ति होकर बोले-‘धनदत्त का कल्याण हो। वह बड़ा धार्मिक है। उसे कह दे कि वह सम्पत्ति दे जाय । शिष्य होना हो, तो सौगतों के सुगतभद्र के पास जाये। मैं शिष्य नहीं बनाता ।' यह कह कर उन्होंने गर्व के साथ एक बार फिर सीपी को देखा । उस दृष्टि का तात्पर्य यह था कि बच्चू अब तो फैंस गए हैं, जायँगे कहाँ ? मुझे एक नई सूचना मिली । मैंने हाथ जोड़ कर विनीत भाव से पूछा-वे अपनी सम्पत्ति और किसी को नहीं देना चाहते । वे आपके चरणों में ही सब-कुछ रख देने का संकल्प रखते हैं । आपकी अनुमति से वे सौगत के शिष्य भी बन सकते हैं । अनुज्ञा हैं, उन्हें इसी प्रकार का सन्देश दे ग्राऊँ ।' पुजारी ने कहा---'हाँ, जा; अभी जा । कल मैं कुछ नहीं लेता । मैं आज ही यहाँ से कान्य- कुब्ज की ओर चला जाऊँगा । स्थाण्वीश्वर के नागरिक असभ्य हैं, भाग्यहीन हैं, कुत्सित हैं। मैं उन पर थकता हूँ । और सचमुच ही धार्मिक ने थूक दिया। फिर बोले--- परिहास करना हो, तो वे इधर आयेंगे ।, मैं पूर्णिमा के दिन उनकी अभद्रता सह नहीं सकता। मुझे इस बात का रहस्य बाद में मालूम हुआ था। बात यह थी कि फाल्गुनी पूर्णिमा को कई बार नागरिकों ने वृद्ध वेश्याओं से पुजारी बाबा का विवाह करा दिया था । इधर के लोग ऐसे परिहास में अधिक प्रगल्भ हैं । अब तक पुजारी बाबा को इस परिहास का ज्ञान हो गया था लेकिन क्या जाने ख और कब तक इसको प्रिमादित किया गया है।