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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा मैं मगध का निवासी हूँ । ‘भद्र, आपने मगध का नाम कलंकित किया है। नालन्दा के भुवन-विश्रुत आचार्य शीलभद्र के सहाध्यायी सुगतभद्र को श्राप नहीं जानते और फिर भी कहते हैं, मगध के निवासी हैं । मैंने अपनी अज्ञता स्वीकार की । बोला-‘भाई, अज्ञ जन पर दया होनी चाहिए। आपके इस सम्भाषण से मैं उपकृत हुअा हूँ। अच्छा, मैं प्राचार्य का दर्शन पा सकता हूँ । 'आचार्य अवरोध में नहीं रहते । आप क्या चाहते हैं, मैं उनकी अनुज्ञा ले आ देता हूँ ।। उनसे कहें कि भगध-देश का निवासी दक्ष भट्ट-- जो लोक में बाण भट्ट नाम से प्रसिद्ध है—आचार्यपाद का दर्शन करना चाहता है। उसे कुछ निवेदन करना है।

  • आप क्या शास्त्रार्थ-विचार के लिए आए हैं १

'मैं प्राचार्य से कुछ आवश्यक निवेदन करना चाहता हूँ । मैं पूछ ता हूँ, अाप यहीं रुकें ।। थोड़ी देर में सामनेर लौटा। उसके स्वर में इस बार मेरे प्रति थोड़ा आदर-भाव था। उसने आते ही पूछा-‘क्या आप मगध के महापण्डित स्वर्गीय जयन्त भट्ट के कनिष्ठ पौत्र हैं ? आचार्यपाद ने आपका नाम सुन कर यह पूछने का आदेश दिया है । मैं चौंका। तो आचार्यपाद मुझे जानते हैं ? मेरे समस्त कलुष जीवन का परिचय उन्हें मिल चुका है १ क्षणभर में मेरा सिर घूम गया । अपने को बल- पूर्वक सँभाल कर मैंने कहा---'हाँ, मैं महापण्डित जयन्त भट्ट का ही अभागा पौत्र हूँ । मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही सामनेर चला गया और शीघ्र ही लौट कर बोला–‘आचार्यपाद ने इसी समय आपको दर्शन देने का प्रसाद किया है। श्राप परम सौभाग्यशाली हैं। अाइए । मैं सामनेर के पीछे इस प्रकार चला, जैसे शूलीविद्ध होने