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कहानीकार का वक्तव्य
 

जैसे ये हमारी पूर्वजो की गाथाएं हैं। इसीसे राजपूत-जीवन पर मेरी कलम काफी तीखी चली। जीवन एक ज्योति है, उसमें ऊष्मा कम है और प्रकाश अधिक। जहां प्रकाश कम और ऊष्मा अधिक है, वह ज्योति नही ज्वाला है, जो जीवन को भस्म कर देती है। वीरत्व उस ज्योति की लौ है। जीवन का सच्चा सुख वीरत्व में है। वीरत्व में अमरता ओतप्रोत है। नश्वरता देह में है। देहाभिमान ही आत्मा को नश्वर बनाता है। देहाभिमान ही भौतिक है, क्षणभंगुर है। जो कोई देहाभिमान को त्याग देता है वही अमर होता है। देहाभिमान को त्यागने के अनेक रूप हैं । परन्तु क्षत्रिययण जो युद्धक्षेत्र में देह त्याग करते हैं, वे सबसे महान हैं । त्याग श्रेष्ठ है, पर सर्वश्रेष्ठ त्याग शरीर का त्याग है, जिसे राजधर्म में युक्त क्षत्रियगण नित्य करते हैं। शरीर का त्याग बिना देहाभिमान को त्याग किए नहीं होता। शरीर-त्याग से ऊंचा त्याग बहुत दुर्लभ है । उसका रूप है-शरीर के भीतर आत्मा को बद्ध रहने पर भी आत्मा शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वरूप हो जाए। ऐसा बहुत कम होता है और जहा होता है, वह पुरुष विदेह या जीवनमुक्त हो जाता है।

परन्तु वीरत्व की रूपरेखा भिन्न-भिन्न हैं । युद्धक्षेत्र मे शस्त्र लेकर शत्रु को मारते हुए मरना आकृष्ट कोटि का वीरत्व है। ऊंची कोटि की वीरता और ओज तो वह है कि शत्रु को क्षमा करते हुए पापो की शान्ति और धैर्य से आहुति देना। धैर्य और उदात्त रीति से सहिष्णुतापूर्वक प्राणत्याग ही सर्वाधिक शौर्य और वीरता समझा जाएगा। राजपूतों का जीवन पृथ्वी के सब योद्धाओं से अद्भुत रहा है। उनके ओज और तेजपूर्ण जीवन में राजपूत स्त्रियों का जितना सहयोग रहा है, उतना कदाचित् ही पृथ्वी की किसी जाति की स्त्रियो का रहा हो। स्त्रियों के ये असाधारण साहसिक कार्य केवल उनके आत्मसम्मान की भावना के आधार पर होते थे। कर्तव्य, स्थैर्य, आत्मगौरव और अप्रतिम ओज ही उनका मार्म रहा। राजपूत मृत्यु के व्यवसायी जीवित नर-नाहर थे। उन्होने अमर जीवन के सिद्धान्तो को समझ लिया था। वे मृत्यु से कभी नही डरे, वृद्ध होने पर कभी पुराने नही हुए। क्रोध और हास्य के वे अधिष्ठाता थे, दैन्य और रुदन उनके पास न था।

जैसलमेर की राजकुमारी', 'कुम्भा की तलवार', 'हठी हम्मीर', 'सिंहगढ़-विजय' ऐसी ही कहानियां हैं। 'राजपूत बच्चे', 'स्त्रियो का ओज' और 'मरी खाल की हाय' में जो छोटे-बड़े स्केच राजपूती जीवन के इतने सजीव बन गए-वह केवल