पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१०४

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बर्मा रोड १०५ उदाहरण पेश करना चाहता हूं कि आपके और सफदर जैसे जबर्दस्त जीवट के बहादुरो को बाइज्जत अपनी बहादुरी काम मे लाते और दुनिया की नजरो मे नेकनाम होते देखू ।" "तो साहेब, राजा बहादुर तो हमने देखे है, वे बडे पोच, दब्बू और मुर्दार होते है। उनका तो हमारी फटकार से ही दम निकल जाता है, गोली खर्च करने की तो ज़रूरत ही नहीं पड़ती। जनरल ने हसकर कहा -अब राजा बहादुरो के रजिस्टर मे यह नया रेकार्ड दर्ज होता है कि इस इलाके में सबसे बड़ा बहादुर इस रुतबे को सरफराज़ कर रहा है। ?" सरदार ने कहा-साहेब, आप जानते है कि हम लोगो की आदते गन्दी हो गई है, आम तौर पर हम जंगली, असभ्य और दया-मायाहीन जानवर है। हमारे संगी-साथी सब ऐसे ही है । न तो हमसे घर बैठकर चुपचाप हराम की कमाई खाई जा सकती है, न हाथ ही ऐसे है कि हल-फावडा चलाए। "तब आप चाहे तो सरकार आपको ऐसा काम दे सकती है कि जिसमे आपके सब आदमी लगे रह सकते है और आप लाखो-करोडो रुपये कमा सकते है। मगर वह बहुत कडी मेहनत और हिम्मत का काम है।" "यदि ऐसा है, तो मै उसे जरूर करूगा।" "तब ये कागजात है। इनपर दस्तखत कीजिए।" "ये कैसे कागजात है "आप जानते है, सरकार 'भारत-बर्मा रोड' बना रही है । जापानियों से बर्मा को और वहा घिरे हुए लाखो आदमियो के जान-माल को बचाने का सवाल है। पर यह काम मामूली ठेकेदारो के बूते का नहीं है। सरकार आपको उस सडक के बनाने का ठेका देती है। अब यह देखना है कि आप कितने रुपयो का ढेर कमा सकते हैं।' "यह आप देख लेना । आप कब तक यह सड़क तैयार चाहते है ?" "ज्यादा से ज्यादा छह माह मे।" "अजी चार माह मे सडक तैयार हो जाएगी। इसे बनाने मे जो सबसे बडी. रुकावट थी, वह तो आज आपके सामने है।" सरदार ने हसकर कहा । कागजात पर दस्तखत हो गए, और वह दुर्दान्त, खूनी, इश्तहारी डाकू ठेकेदार