पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१०९

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११० लाल पानी भी जीता न लौटेगा । परन्तु जाम हम्मीर ने उसकी बात हसी मे 'उडा दी। और जब उसने देखा कि राजा राजपुत्रो सहित दुश्मन के घर जाने को तैयार है, तब उसने भी उनके साथ ही जाने का निश्चय कर लिया। खतरे का पूरा सामना करने और काल के मुह मे जाने की उसने पूरी तैयारी की। उसने बेटो, पोतो और परिवार के बूढे-बडो को इकट्ठा करके गुप्त रूप से कहा कि मैं अपने धर्म के लिए राजा के साथ बैरी के घर जा रहा हू, जहा से हमारे जीता लौटने की बहुत कम सभावना है। सो तुम होशियार रहना और भीर पड़ने पर अपने धर्म को न छोडना और कदाचित् मै या राजा बैरी के घर से जीते वापस न लौटे, तो तुम मौका पाकर बैरी से हमारे प्राणों का बदला लेना। इतना कहकर उसने भली भांति अपने को हथियारो से सज्जित किया, दो-दो तलवारें बांधी और साड़नी पर सवार हो राजा के साथ शत्रुपुरी को चला। जाम रावणसिंह ने राजा हम्मीर की बडी भारी खातिर और सेवा की। सारे नगर को सजाया। बडे-बड़े नाच-रग, खेल-तमाशे और गाजे-बाजे का जुगाड़ किया। शाम को नाच- रग की महफिल जुड़ी। अवसर पाकर रावण ने हाथ जोडकर हम्मीर से कहा, "आप हमारे राजा हैं, और हम आपके सेवक । सेवा और राजनिष्ठा ही हमारा धर्म है । उसीका मैंने पालन किया है । सिंहासन, राज्य, राजा, राज-परिवार और राज्याधिकारियों की एकनिष्ठा से सेवा करना मुझ अधीन का धर्म है । और हमारी सेवा प्रेम से स्वीकार करना आपका कर्तव्य है। आपके पधारने से हमारा कुल उज्ज्वल हुआ और हमारा घर पवित्र हुआ। अब रसोई रूखी-सूखी जैसी बन पडी है, तैयार है। कृपा कर आप महाराज और सब सरदार भोजनालय मे पधारिए।" जाम रावणसिह ने हाथ जोड़कर इस प्रकार नम्रता से विनती की कि जिसे सुनकर जाम हम्मीर और सब सरदार हसते हुए और रावण की प्रशसा करते हुए उठकर भोजन के लिए अटाले की ओर चल दिए । रावणसिंह ने गाव के बाहर एक विशाल मैदान मे डेरे-तम्बू और कनाते लगाकर काफी धूमधाम से हम्मीरजी का उतारा किया था। खाने-पीने और दूसरे मौज-मज़ा के प्रबन्ध भी वही थे। जाम हम्मीर को रावण और उसके सरदारों ने एक सुसज्जित तम्बू मे ले जाकर उत्तम आसन पर बैठाया। रावण भी एक आसन पर बैठा। दूसरे तम्बुओ में और सरदार बैठे। सेवकों ने सोने के थालों में विविध पकवान और भोज्य पदार्थ हम्मीर और