पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१२१

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लाल पानी १२३ १ आए। इस समय शिवजी भी इन सिपाहियो के साथ थे। सिपाही अब थक गए थे और उनके हाथ ढीले पड़ रहे थे। भिया मियाना मुह फाड़कर शिवजी की ओर ताकने लगा। शिवजी को सत्य बात समझने मे देर न लगी। उन्होने आगे बढ़कर सिपाहियो से कहा, "तुम सब हट जाओ और एक भाला हमे दो।" एक सिपाही ने भाला उन्हे थमा दिया और सलाम करके पीछे हट गया। शिवजी ने भाला गजी मे भोका। उसकी अणी युवराज खगार की जाघ मे घुसी और वह लहू से भरी निकली। शिवजी को अब निश्चय हो गया कि कुमार यही है। उसने तुरन्त निराशा का भाव प्रकट करते हुए भाले की अणी धरती मे भोक दी। लहू लगी अणी मिट्टी मे धस गई । शिवजी ने भिया पटेल से आखे मिलाई, आखो ही मे कुछ सकेत किया और रावण के सम्मुख जाकर कहा, “महाराज, इन गजियो मे राज- कुमार नही है।" यह सुनकर जाम रावण अत्यन्त निराश और क्षुब्ध हुआ। उसने कुए और बावली मे भी तलाश कराई। परन्तु कुमार नहीं मिले। कुछ लज्जा और पश्चा- ताप से उसने भिया पटेल को लक्ष्य करके कहा, “पटेल, राजाज्ञा के कारण तुझे आज भारी सकट झेलना पड़ा। पर जो होना था, वह हो गया। आज से सीमा- सहित यह गाव तुझे बख्शीश देता है। और गाव में आग लगाई, लोगो की जान- माल की हानि हुई, उसका हरजाना राज्य से मिलेगा। हमारी आज्ञा है, तुम लोग फिर से घर-गाव बसाकर खुशी से रहो।" भिया पटेल ने कहा, "महाराज, आपकी राज्य-प्राप्ति के शुभ क्षण मे मुझ सेवक को ऐसी बख्शीश मिल गई है कि जिसे पीढियो तक मेरे वश मे कोई नही भूल सकेगा। अब कृपा करके पटेल की यह पाग लीजिए और किसी दूसरे भाग्य- वान के मस्तक पर सुशोभित कीजिए जिससे इस दीन दास को और उसके वश मे किसीको भविष्य मे ऐसी बख्शीश मिलने की सम्भावना न रहे।" पटेल के इस भाषण से अप्रसन्न होकर रावण ने वह पाग पटेल से लेकर एक दूसरे मियाना के सिर पर रख दी और फिर विना एक शब्द कहे अपने लश्कर- सहित वहां से चला गया। $ जाम को दल-बल सहित वहां से जाता देख भिंया मियाना ने खुदा का शुक्रिया