DO .. - रूठी रानी रूप और यौवन मे अपूर्व उस सुन्दर राजकुमारी का मान भी अडिग था । पिता के दुश्मन की अर्धागिनी बनकर भी २७ वर्ष तक पति-प्रेम को ठुकराने हुए एक दिन सती हो गई अब से पौने चार सौ वर्ष पहले जैसलमेर के रावल लूनकरण को एक पुत्री का जन्म हुआ। उसके जन्म लेने से राजपूताने मे हलचल मच गई । जैसलमेर की सुन्दरियां उन दिनो जगद्विख्यात थी, पर लूनकरण की यह बेटी उन सबमे अलौकिक थी। ज्यो-ज्यो वह शशिकला बढती गई, उसके सौदर्य की धूम मचती हो गई। देखते- देखते राजपूताने भर के राजाओ ने उसकी याचना की। सखियां सोचती थी- देखे, किस भाग्यवान् को यह अछूता पुष्प-लाभ होता है । कुमारी का नाम उमा था। सखिया बड़े-बडे राजकुमारो के रूप-गुण का बखान कर उसके मन की थाह लेती थी, पर वह अपने रूप के नशे मे किसीको कुछ गिनती ही न थी। उसकी हठ निराली थी,तथा साहस और आत्मसम्मान का भाव बेढब था। ससार से निराला उसका स्वभाव था। वह छुई-मुई थी। उगली दिखाई और वह मुबई । जब वह सयानी हुई तो माता-पिता को उसके ब्याह की चिंता हुई। ? "महाराज, आप बेसुध बैठे है, उमा सयानी हो गई। उसके हाथ पीले करने की चिता कीजिए। बेटी बाप के घर नही खपती।" "मुझे भी ध्यान है, परचिंता क्या है ? राजा लोगों मे चर्चा हो रही है, साझ- सबेरे कही न कही से सन्देश भी आ जाएगा। उमा को मागते तो सब है पर उसके स्वभाव से डरता हू-पराये घर कैसे निभेगी ?" "आप भी तो अपनी ओर से किसीको लिखिए।" "मै जिसे लिखूगा उसका मिज़ाज आकाश पर चढ़ जाएगा। मै भी तो राज- किसीका घमण्ड नहीं देख सकता।" १२५