पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१२८

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१३० रूठी रानी . आज्ञा दीजिए।" "अच्छा, बरातवालो को भी कहला भेजो।" "हा, एक बात मुझे मारवाड़ के ज्योतिषियो से पूछनी है।" "कौन-सी बात?" "जन्म-पत्र से तो नही, पर बोलते नाम से आज राव मालदेवजी को चौथा चन्द्रमा और आठवा सूर्य है । दोनो ग्रह घातक है, कोई ग्रह बारहवा नही है, नही तो..." "जाने दीजिए, वहा ज्योतिषियो ने देख-भाल लिया होगा। आपके कहने से व्यर्थ आशका बढेगी।" "नही, मेरा धर्म है कि उनसे कहकर समाधान करा दू।" "कैसा समाधान ?" "यही दान-दक्षिणा आदि।" "यह काम यही हमारी तरफ से करा दीजिए।" "जी नहीं, यह उन्हीकी तरफ से होना चाहिए, मै सामग्री बता आऊंगा।" "खैर, तो आप झटपट आ जाइए।" "बस, गया और आया।" 7 "महाराज, राघोजी जोशी आए है।" "आने दो, वे बड़े भारी ज्योतिषी है, उन्हे आदर से ले आओ।" "पधारिए महाराज, आपका आना कैसे हुआ ?" "कुछ मुहूर्त बताना था।" “कहिए।" "केवल आप ही को सुनना चाहिए।" यह सुन सब लोग वहा से हट गए। "सावधान, रावलजी ने दगा विचारी है, आप चौरी से लौटने न पाएगे।" "ऐसी बात है ?" "आप धीर-वीर, बुद्धिमान है, अधिक कहने का अवसर नही है, अब मै जाता "आप चिन्ता न करे, मैं सब ठीक कर लूगा।"