पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१३०

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१३२ रूठी रानी वालियो पर फेंक दिया । गानेवालियो ने फिर गाया : दारू पीवोरण चढ़ो राता राखो नैन । बैरी थारा जल मरे, सुख पावेला सैन ॥दारू॥ कलाली ने फिर प्याला भरकर दिया। गानेवालियों ने गाया : सोरठ रो दोहौ भलो, कपड़ो भलो सपेत। नारी तो निबली भली, घोड़ा भलो कुमेत ॥ दारू ॥ प्याले पर प्याले बढ़ चले, रावजी मस्त हो सुरा, सुन्दरी और सगीत मे डूब गए। उमा के यहां महफिल सजी थी, मद्य के रत्न-जटित पात्र में गजक तैयार थी, रावजी को बुलाने दासी भेजी गई थी, उनके आने की आशा मे गीत गाए जा रहे थे: महला पधारो महाराज हो, दारूरा मारू, महलां पधारो महाराज हो, कदरी जोऊंछी सोजा वाट हो॥महलां पधारो॥ उमा हसकर लजा गई। गानेवालियो ने फिर गाया: गैला-गला भूलियां, महलां पड़ी पुकार। प्रावण री वेला नहीं, अलबेला राजकुमार ॥महलां पधारो॥ "दासी!" "बाईजी राज !" "रावजी कहा हैं ?" "वे भारेली के यहा सहेलियो के बीच बैठे है, वहा 'दारूडो दाखांरो' गाया जा बिजलियां मांडेलियां, ऊपर ते रलियां। परदेसी री, साजना पतीजे मिलिजां॥ उमा ने क्रोध से कहा: "खामोश !" क्षणभर में सन्नाटा छा गया। "सब बाहर चली जाओ। आरती के थाल के दीपक बुझा दो, उसे औधा