पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१४

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कहानीकार का वक्तव्य व्यर्थ है कि ऐसी भंडाफोड करनेवाली कई कहानियां लिखने के कारण मेरे अनेक श्रीमन्त ग्राहकों ने नाराज होकर मुझे अपने यहा बुलाना ही बन्द कर दिया। पाठक यदि ऐसी दो-चार कहानियों का मज़ा लूटना चाहते है तो मेरी ‘ठकुराइन', 'अक- स्मात्', 'कन्यादान', 'मुहब्बत', 'जैण्टिलमेन' आदि कहानियां पढ़ देखे। सबसे अधिक कहानिया मैने 'चांद' मे लिखी। फिर भी उनकी संख्या बीस-पचीस से अधिक नहीं होगी। इन कहानियो मे मैने बहुत परिश्रम किया। मैं नहीं जानता कि चोटी के लेखको की क्या शैली है. परन्तु अपनी एक कमजोरी तो मै कहूंगा ही कि अपनी कहानी के साथ मैं बहुत काल तक रहता हूं। मै उसमें डूबता हू। उसे घिलमुल कर डालता हूं। फिर उसे रस्सी की भाति उमेठ डालता हूं। इसके बाद उसे रुई की तरह धुनता हूं। कहानी के साथ ही अपने हृदय और मस्तिष्क की भी मै यही गत बना डालता है। फिर कहानी और मैं एक हो जाते है। तब मैं उसके साथ रोता, हसता, गाता और नाचता हू। कहानी के पात्रों को जब इच्छा होती है, मुझसे सलाह लेते है, और कही मेरी गाडी अटकती है, तो मै उनकी सलाह लेता हूँ। इस प्रकार मेरी कहानी तैयार होती है और मैं उसके नीचे दस्तखत करके सम्पादक के पास भेज देता हू । प्रायः पत्रकार आंधी की भाति तकाजा करते रहते हैं; खास करके जो मजदूरी नकद देते है या पेशगी भेजते है, परन्तु इनके तकाजो का मेरे अन्धेर दरबार मे कोई मूल्य नही। कभी-कभी मुझे एक कहानी लिखने मे एक-एक वर्ष लग जाता है। 'चाद' में प्रकाशित 'जीवनमृत' कहानी एक वर्ष में पूर्ण हुई थी। उसी पत्र में प्रकाशित 'पतिता' ने आठ महीने लिए थे। 'अम्बपाली' ने छः मास खर्च कराए थे; और 'उपगुप्त' तथा 'प्रबुद्ध' ने आठ-नौ मास लिए थे। 'तन्मय' मेरी चार-पांच पृष्ठो की छोटी-सी कहानी है। वह सात-आठ बार लिखी गई और चार मास में पूर्ण हुई। 'माधुरी' की 'जीजाजी' दो मास में खत्म हुई थी। "द्वितीया' ने पांच मास और 'नवाब ननकू' ने ढाई मास लिए थे। तब क्या इतना समय खोने का कारण आलस्य है ? मेरे अति घनिष्ठ मित्र तक यही विश्वास करते है, पर मैं कहानी के अतिरिक्त अन्य सब विषयो पर, जिनमें मेरी गति है, अपने नित्य के सब काम करते हुए, फुलस्केप के पचास पृष्ठ दैनिक लिख सकता हूं और प्रायः लिखता ही है। यद्यपि अपनी कहानियों के साथ चिरकाल तक रहना मैंने अपना दोष माना