पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४२ रूठी रानी ज्योंही रूठी रानीका सुखपाल वहां पहुचा, आसाजी ने ड्योढ़ीदार को पुकार- कर कहा-बाईजी से अर्ज करो कि आसा वारहट मुजरा गुजारता है और कुछ विनय भी किया चाहता है । इसके बाद उन्होने ऊंचे स्वर मे यह दोहा पढा: मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान। दोय गयन्द न बांधिए, एकण खूटे ठान ।। दोहा सुनते ही रानी ने तुरन्त सवारी रोकने का हुक्म दे दिया। सब चकित रह गए। ईश्वरदास ने बहुत जोर मारा, पर आसा का जादू चल ही गया । रानी ने वही कोसाना गाव मे डेरे डाल दिए, आसा ने ड्योढी पर जाकर कहा : "धन्य बाईजी, मान तुम्हारा ही सच्चा और सब कहने की बात है।" "बाबाजी, यह दोहा फिर पढो, बड़ा सच्चा दोहा है।" (फिर पढ़कर) "बाईजी, आप सच्ची मानधनी है, आपका यह मान अमर रहेगा।" "बाबाजी, जो यह मान जन्मभर निभे तो बात है।" "बाईजी, तुम्हारे बाद जीता रहा तो तुम्हारा नाम अमर कर दूगा।" सब "घणी खमा अन्नदाता बाईजी राज, रावजी वीरगति को प्राप्त हुए।" "रावजी रण मे खेत रहे ?" "महाराज, उन्होने महावीर की मृत्यु पाई।" "सब रानिया सती हो गई ?" "स्वरूपदे झाली के सिवा सब रानिया, पातुर, खवासें सती हो गई, इक्कीस थी।" "झाली रानी सती नहीं हुई ?" "उनके पुत्र ने उन्हें रोक लिया कि सरदार आ जाए तो उन्हे राजतिलक देने का वचन लेकर सती हो । उन्होंने वचन सरदारों से ले लिया पर पुत्र को श्राप दिया कि तूने मुझे पाच दिन अटकाया इससे तेरा राज अटल न रहेगा। कल वे .पगड़ी के साथ सती हो गई।" "पगड़ी आई है ?" "कार्तिक सुदी पूर्णिमा को आ पहुचेगी।" "अब मैं किससे रूठूगी, जिससे रूठी थी, वही न रहा तो अब जीकर क्या .