पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१५

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कहानीकार का वक्तव्य 3 है, परन्तु जब मै इस सुख का, जिसका अनुभव अपनी कहानी के पात्रो के साथ रहते करता हू तथा जो भावी प्लाट के सम्बन्ध में उनसे सलाह-मशवरा करने, उनके साथ रोने और हसने मे आनन्द आता है, वह वर्णनातीत है। कभी-कभी अत्यन्त , साधारण-सी बात पर उत्कृष्ट कहानी तैयार हो जाती है। 'ननाब ननकू' मेरी उत्कृष्ट कहानी है, परन्तु उसकी मूल छाया मुझे एक मोटर ड्राइवर से मिली जब उसका मेरा कुछ घण्टों का सहवास हुआ था। 'तिक- डम', 'ठाकुर साहब की घडी', 'प्राइवेट सेक्रेटरी' और 'मरम्मत', 'अकस्मात्' एक जरा-सा सूत्र मिलते ही एक ही सिटिंग मे लिखी गई है । एक-दो कहानिया कुछ स्त्रियो को देखकर ही एकाएक प्रेरणा पाकर लिखी गई है। 'पानवाली' और 'दे खुदा की राह पर' ऐसी ही कहानिया है । कुछ कहानियो के साथ मेरे अपने जीवन की मार्मिक पीड़ाओ का भी समा- वेश है, पर ऐसी कहानिया कम है। इधर मैंने कुछ नये ढग की कहानिया लिखने की चेष्टा की है । इन कहानियो में न कथा है, न घटनाए है ; न आदि है, न अन्त; न संयोग है, न वियोग; न चरित्र- चित्रण । केवल भावना का अन्तर्वेग है। 'दूध की धार', 'धरती और आसमान', 'नहीं', 'युगलागुलीय' ऐसी ही कहानियां है। इन कहानियो मे सोद्देश्य भावना की सर्वथा समाप्ति हो जाती है और कलापक्ष ही निखर जाता है । परन्तु चाहे मेरी कथा मे कोई उद्देश्य हो या केवल कला का ही विकास हो, उनमे जीवन की व्याख्या अवश्य रहती है। मेरी यह निश्चित धारणा है कि जीवन की व्याख्या का नाम ही साहित्य है । साहित्य को जीवन के इतिवृत्त से बचाकर उसकी व्याख्या मे हा केन्द्रीभूत करने से साहित्य का, सच्ची कला का, रूप निखरता है । आरम्भ मे मैंने समालोचको की शूरवीरता और बहुज्ञता का सकेत किया है। ये समालोचकगण अधिकाश मे साहित्यिक नही, अध्यापक है। इनमे से बहुतो की साहित्यिक सामर्थ्य प्रायः नगण्य है। परन्तु विद्यार्थियो को पढ़ाते-पढाते वे समा. लोचना करने का दुस्साहस कर बैठते है । वे नही जानते कि लेखक किस मनोभाव मे मग्न होकर जीवन के रेखाचित्रो को उभारता है। उनकी समालोचना की टेक्निक एक प्रकार से निर्जीव यान्त्रिक-सी होती है। इनमें बहुत-से तो ऐसे है जिनका साहित्य मे भी बड़ा नाम है, पर जिस विषय की वे समालोचना करते हैं, उस विषय पर उनका अध्ययन नगण्य ही है । डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी और N ,