पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१५२

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वीर बादल "इसके वाद राणी-राणा मे अकेले में भेट होगी। पास में तुम्हारे काका गोरा शेडे पर सवार होगे। वे तुरन्त ही राणा जी को घोड़ा और हथियार दे देंगे। और किले की ओर चलता कर देगे। फिर तुम डोली से निकल अपने राजपूती जौहर के हाथ दिखलाना।" C "ऐसा ही होगा काकीजी, हम सुलतान को दगावाजी का वह पाठ पढ़ाएगे, जिमका नाम है।" "तब जाओ बेटे, अपने गोरा काका से कहो। वे सुलतान से कहला भेजे कि राणी आपके पास आने को राजी है। मगर वे अपनी बादियो और सहेलियों के साय आएंगी। उन्हे परदे मे उतारने का बदोबस्त कीजिए, और राणा को छोड दीजिए तथा राणी को एक घण्टे राणा से एकान्त में मिलने की आज्ञा मिलनी चाहिए, बस।" "समझ गया। अभी जाकर गोरा चाचा से सब हकीकत बयान करता है।" "जाओ पुत्र, ईश्वर तुम्हे सफलता दें।" सुलतान की छावनी मे जश्न मनाया जा रहा था। उसे खबर लग चुकी थी कि पद्मिनी अपने महल मे चल चुकी है। वह पहाड़ से उतरती हुई डोलियो को देख- देखकर प्रसन्न हो रहा था। वह अपनी चालाकी पर खुश हो रहा था। सिपाहो गराब ढाल रहे थे और नाच-गान मे सब मस्त थे। किसीको किसीकी सुध न थी। धीरे-धीरे डोलिया पठानों के शिविर में आ गईं। और वे सब एक बड़े तम्बू ने उतार दी गई। रानी ने कहला भेजा-अब आप एक घण्टे के लिए मुझे राणा से मिलने की इजाजत दें। इसके बाद तो मैं आपकी हू ही। बादशाह ने हसकर कहा-अच्छा, अच्छा, इसमे कोई हर्ज नहीं है। राणा अच्छा आदमी है। मगर एक घण्टे बाद मै कुछ नही सुनूगा। “यह मैं क्या देख-मुन रहा हू, अच्छा होता कि इससे पहले ही मर गया होता। पद्मिनी, तुमसे ऐसी आशा न थी। अब तुम मुझे अपना मुह दिखाने का साहस करती हो !" राणा भीमसिह ने क्रोध से थर-थर कापते हुए पालकी के सुनहरी काम की मोर अग्निमय नेत्रों से देखते हुए कहा। पर्दा हिला। वादल ने घूघट से मुह निकालकर कहा, "काकाजी, सावधान !" "कौन, तुम हो बादल !"