पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१५३

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वीर बादल "जी हां, और सात सौ डोलियो मे जुझाऊ वीर भरे है । हम, हम सुलतान से निबट लेगे। बाहर गोरा काका घोड़ा लिए खड़े है। आप घोड़े पर चढकर किले मे जा पहुचे । और फिर सेना लेकर सुलतान की सेना पर टूट पड़ें,तब तक हम निबट लेगे।" "शाबाश बेटे, हम आज दगाबाजी का "चुप, ज्यादा बातें न कीजिए। खीमे के पीछे घोड़ा खड़ा है, आप जाइए, हम शत्रुओ को रोकते है । बादल पालकी से निकलकर खडा हुआ। सकेत होते ही हजारो राजपूत हर-हर करके तलवारे सूतकर निकल पडे। रग मे भग पड गया। छावनी मे उथल-पुथल मच गई। जो जहां था, वही काट डाला गया। तैयारी का अवसर ही न था। मारो, मारो की आवाज सुनाई पडती थी। घायलो के चीत्कार मारते हुए कराहने की आवाज़ और राजपूतो की हर हर महादेव तथा पठानो की अल्लाहो अकबर की तुमुल ध्वनि हो रही थी। रुण्ड-मुण्ड कट-कटकर गिर रहे थे। राणा भीमसिह तीर की भाति किले की ओर जा रहे थे। किले पर राजपूत तलवारें झनझना रही थी। बादल को पठानो ने घेर लिया था। पर वह बालक किले के नीचे पथ पर खडा दोनो हाथो से तलवार चला रहा था। गोरा ने तलवार चलाते-चलाते कहा, "वाह बेटे, खूब खेत काट रहे हो !" "सावधान काका जी, वह पीछे से वार होता है।" तलवार चलाते-चलाते गोरा ने कहा-हर्ज नही, राणा जी महल मे पहुच गए है, वह तोप छूटी।" तलवारे और तीर बरस रहे थे। गोरा ने कहा-बादल, अब मेरे हाथ नही चलते। बादल ने कहा-काकाजी,हम उस लोक मे मिलेंगे।-गोरा घाव खाकर गिर पड़ा। बादल ने देखा और शत्रुओ को चीरते हुए ज़ोर से उनके कान के पास पुकारा, मैं, काका जी, आपकी वीरता का बखान करूगा! महाराणा सेना लेकरआ रहे हैं ! राणा ने आते ही शत्रुओ को गाजर-मूली की तरह काटना आरम्भ कर दिया। शत्रु के पैर उखड़ गए। सुलतान पिटे कुत्ते की तरह सब सामान छोड़कर भागा। उसकी छावनी जला दी गई। बादल के शरीर पर अनगिनत घाव थे। उसके मुमुर्ष शरीर को महलो मे लाया गया। शरीर से एक-एक बूद रक्त निकल गया था। और उसके होठों पर हसी की रेखा थी।