पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१६९

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१७२ नवाब ननकू आशीर्वाद दिया। राजा साहब ने इशारा किया और कुवर साहब चले गए। एक ठण्डी सास खीचकर राजा साहब ने कहा-इस निकम्मे बाप ने अपने बेटे के लिए भी कुछ न छोडा राजेश्वरी; मगर तसल्ली यही है कि जहीन है, पेट भर लेगा। "हुजूर ऐसा क्यो फर्माते है ! इन मुबारक हाथो से भीख पाकर लोगो ने रियासतें खड़ी कर ली है। दुनिया मे दिल ही तो एक चीज़ है हुजूर, भगवान् भी यह सब देखता है । वह उस आदमी की औलाद पर बरकत देगा जिसने अपनी ज़िन्दगी मे सबको दिया ही है, लिया किसीसे भी कुछ नहीं।" राजा साहब ने हाथ बढाकर राजेश्वरी का हाथ पकड लिया। बहुत देर तक कमरे मे सन्नाटा रहा। दो पुराने किन्तु पानीदार दिल मन ही मन एक दूसरे को यत्न से सचित स्नेह से अभिषिक्त कहते रहे । आखिर राजा साहब ने एक ठण्डी सास भरी, और गुडगुड़ी मे एक कश लगाया। नवाब ननकू हांफते हुए आ वरामद हुए। उनकी नाक पर ऐनक नाक की नोक पर खिसक आई थी । आते ही उन्होने खिदमतगार को एक डाट दी-अरे कम्बख्त, बदनसीब, अंगीठी मे और कोयले क्यो नही डाले, वह बुझ रही है । नवाब साहब जब तक हुक्म न दें, ये नाब के बच्चे काम न करेंगे। राजा साहब को दौरा हो गया, तो याद रख कच्चा चबा जाऊगा। उठ, जल्दी कोयले डाल। खिदमतगार चुपके से उठ गया । नवाब ने ही-ही हंसते हुए कहा-देखा राजेश्वरी भाभी, खिदमतगार साले नवाब ननकू के आगे बन्दर की तरह नाचते हैं। मगर मुह पर कहता हूं, बिगाड़ दिया है राजा साहब ने । नौकरों को बहुत मुह लगाना अच्छा नही। "लेकिन नवाब, उन गरीबों को छह-छह महीने तनख्वाह नही मिलती है, बेचारे मुहब्बत के मारे पड़े है।" "तो इससे क्या? उनके वाप-दादों ने इतना खाया है कि सात पीढी के लिए काफी है।" "भगर उन्होंने खिदमत भी तो की है।' "तो रियासतें भी तो पाई हैं।"