पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१७२

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नवाब ननकू जाए।" नवाब ने कहा। राजा साहब हंस दिए। उन्होने नवाब का हाथ पकड़कर और खीचकर छाती से लगा लिया। फिर आंखों में आसू भरकर कहा-ननकू, मेरे प्यारे भाई !हमारी मा दो थी, मगर वालिद एक थे। फिर भी तुम मेरे सगे भाई हो, ऐसे, जैसा दूसरा मिलना मुश्किल है । और ननकू, मैं सिर्फ प्यार की बदौलत ही जी रहा हू |-- उन्होने प्याला होठो से छुआकर नवाब को दिया और नवाब गटागट पी गए । उनकी आखो मे आंसू और होठो मे हसी बिखर रही थी। नवाब ने कहा-राजेश्वरी भाभी, बहुत दिन से सूने-सूने दिन जा रहे थे। आज तो कुछ जच जाए। "मगर नवाब, गले में अब सुर तो रहे ही नहीं।" "बेसुरा ही सही।" महाराज ने हसकर कहा--राजेश्वरी, आज नवाब को बहुत मिहनत करनी पड़ी है, उसकी बात रख लो। "जो हुक्म, मगर मेरी एक अजं है।" "कहो।" "नवाब साहब को जो तबरुक बख्शा गया है, वही लौडी को भी इनायत हो। "ओह, अच्छा ठहरो, सब्र करो।" नवाब ने इशारा किया। रामधन तबला-हारमोनियम ले आया। हारमोनियम नवाब खीच बैठे, और रामधन ने चारो ओर तकिये लगाकर राजा साहब को आराम से बैठाकर तबले उनकी गोद मे रजाई मे लपेटकर रख दिए। अम्बरी तमाखू की एक नई चिलम चढ़ा दी। तबले पर एक चोट देते हुए राजा साहब ने कहा -राजेश्वरी, अभी उगलियो पर लकुए का असर नहीं है, काम दे रही है। राजेश्वरी ने चुपचाप आखो में प्यार भरकर राजा साहब पर उडेल दिया और आलाप लिया। हारमोनियम पर नवाब की अभ्यस्त उंगलिया नाचने लगी, और तबले पर मृदु मन्द ताल नृत्य करने लगा। राजेश्वरी की प्रौढ स्वर-लहरी ने वातावरण मे एक प्यास उत्पन्न कर दी। यह वैसी न थी जैसी वासना और यौवन की आंधी के झोको में मिली रहती है। यहां तीन प्रेमी विश्वस्त, पुराने और ऊचे हृदय, अपने भौतिक आनन्द की चरम 32 --