पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नवाब ननकू अब खुल गया जनाना अस्पताल, कितने लोगो का भला होता है। बोर्ड ने खाम- खाह मेरा नाम अस्पताल के साथ जोड़ दिया है। “जी हां, खामखाह ही। वह लाखो की स्टेट जो कौड़ियो मे दे दी। और अब हुजूर, इस किराये के मकान में बहुत खुश है।" "बहुत खुश, राजेश्वरी, बहुत खुश। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। लेकिन बहुत देर हो रही है राजेश्वरी, गाड़ी पकड़नी है। स्टेशन काफी दूर है, और रास्ता बडा खराब है। तुम्हारा इक्का आ गया?" "धक्के दीजिए मुझे, बुढिया जो हो गई हूं, अब आप यही तो करेगे।" राजा साहब असयत होकर पलग से आधे उठ गए। राजेश्वरी को खीचकर छाती से लगा लिया। फिर प्यार से उसके गगा-जमुनी बालों की लटो को उगलियों में लपेटते हुए कहा-बुड्ढा-बुढिया कौन होता है राजेश्वरी, मेरी आखो में तुम वही, नये केले के पत्ते-से रूपवाली, अछूते यौवन और अपार प्यारवाली, मेरे दिल और दिमाग की तरावट राजेश्वरी हो। तुम या मै भले ही बूढ़े हो जाए, लेकिन इन आखों में झांककर जिसने तुम्हे देखा है, वह बूढा नहीं। और तुम्हारे भीतर बैठकर जो एक-एक मोती तुम्हारी आखो से सजाता जा रहा है, वह भी । बूढा नही। राजेश्वरी धीरे से राजा साहब के मुंह के बिल्कुल पास फर्श पर बैठ गई। रामधन अम्बरी तमाखू चढाकर गुडगुडी रख गया। राजा साहब चुपचाप तमाखू पीने लगे। तमाखू की खुशबू ने कमरे को मस्त कर दिया। राजेश्वरी ने कहा- हुजूर वादा-वक्फ हो। राजा साहब ने भौहे सिकोड़कर राजेश्वरी की ओर देखकर कहा-वादा? "जी।" "क्या?" "तबर्रुक।" "ओह, भूली नही राजेश्वरी !" "भूलने की एक ही कही, कल से आस लगाए हू । नवाब के सामने फिर नही कहा।" राजा साहब कुछ देर चुपचाप गुड़गुड़ी पीते रहे। फिर कहा-जरा और पास आओ तो राजेश्वरी।