पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१८५

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द्वितीया पत्नी का चुम्बन किया। मुख्य विवाह तो उनका अब हुआ। सारी विषमता नष्ट हुई । अब दोनों व्यक्ति एक-दूसरे के अति निकट,परस्पर एक-दूसरे के परम हितैषी, प्रेमी और अकपट बन्धु बने । अब वे वास्तव में पति-पत्नी थे; और आनन्दी अब इसका रहस्य समझ गई थी। चन्द्रनाथ छुट्टी पूरी होने पर नौकरी पर आ गए। साथ मे अकेली आनन्दी थी। नौकरी बड़ी आसान थी। अधिकाश समय छुट्टी का रहता और वह पत्नी के पास कटता। चन्द्रनाथ ने देखा, इस पत्नी-पद पर यह जो बालिका आई है, उसमे नैसर्गिक सरलता को छोड़कर और कुछ योग्यता इस पद पर बैठने योग्य नही । रूप? रूप एक पृथक् वस्तु है-पत्नीत्व से उसका क्या सम्बन्ध? चन्द्रनाथ की गहन विवेचना बुद्धि इस बात को ठीक-ठीक समझ गई थी। वे बड़े कर्मठ और धीर पुरुष थे। वे पत्नी की कमी दूर करने, उसे पूर्ण पत्नी बनाने के आयोजन में लगे । साधारण शिष्टाचार से लेकर सीना-पिरोता, रसोई बनाना, पढ़ाना- लिखाना एव गान-विद्या का भी शिक्षण देना उन्होने ठान लिया । वे आवश्यकता से ऊची उड़ान उडे । केवल कल्पना से नही, कर्म से भी। वे दो-दो घण्टे चूल्हे के आगे बैठकर सब प्रकार के पाकशास्त्र की स्वय शिक्षा देने लगे। पाक-विद्या की जितनी हिन्दी पुस्तकें मिल सकती थी, सभी उन्होने खरीद ली। फिर साधारण सिलाई से लेकर कसीदे तक के काम के लिए उन्होने शिक्षिकाए नियत कर दी। पढ़ाने के लिए दो अध्यापक प्रतिदिन बारी-बारी से आकर पढ़ाने लगे। एक केवल गणित और दूसरा हिन्दी भाषा। रात को स्वय चन्द्रनाथ हारमोनियम लेकर बैठते ; परन्तु एकदम वे कल्याण, विहाग और सोरठ पर दौड़ पड़ते । विवाह के बाद नववधू को ऐसी भयानक विपत्तियो का सामना करना पड़ता है, इतना कठोर परिश्रम करना पड़ता है, यह आनन्दी को ज्ञात न था ।वह भौचक- सी सभीकी आज्ञा मानती, सभी कुछ सीखना चाहती, सभी तरह योग्य बनना चाहती। पर सबके बीच मे एक वस्तु बाधक थी। उसकी प्रकृति, आयु का विकास, यौवन का विकास और ठीक समय पर चन्द्रनाथ की, नहीं-नही पति की प्राप्ति। परन्तु पति में एक अद्भुतता थी। क्षणभर में तो वे उस नववधू के नवपति, आनन्द और उल्लास के देवता, प्यार और आदर के उद्गम थे; परन्तु दूसरेहीक्षण मे कठोर गुरु, नियन्ता, संरक्षक, शिक्षक और न जाने क्या-क्या ? अब बालिका समझे तो .