पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१९१

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पुरुषत्व पुरुष कामना का दास न हो और वह स्त्री के सौन्दर्य को अछूता प्यार और आदर करे, तो स्त्रा के लिए वही वास्तव में पुरुष है | अपने चारों ओर भ्रमरों के मंडराने पर स्त्री अपने सतीत्व का मूल्य भूल जाती है | फिर एक वेश्या बाला भी सतीत्व की इच्छा तो रखती ही है। यह कहानी १९२६ में 'चांद' में प्रकाशित हुई थी | जिसे पढकर प्रशंसा-पत्रों का तांता लग गया था । पत्र ही नहीं, पाठकों ने लेखक के पास इनाम के तौर पर रुपयों के मनीआर्डर भी मेजे थे । 'चांद' की ख्याति इस कहानी से बहुत बढ गई थी । इसमें स्त्री-पुरुषों के शारीरिक सम्बन्धों का एक वैज्ञानिक वर्णन है जो अद्भुत और सत्य है । राजेन्द्र अपनी करुण कहानी कह चुके, तब उसे सुनकर रामेश्वर जोर से हंस पड़े। इस हास्य से अप्रतिभ होकर राजेन्द्र ने उधर से मुह फेर लिया। रामेश्वर बोले-राजेन्द्र बाबू ! हिकमत सीखकर ही हकीमी करना उचित है। जिस विद्या को तुम जानते ही नहीं, उसमें टांग क्यों अड़ाते हो और फिर बेव- कूफ बनने पर बिगडते क्यो हो ? राजेन्द्र ने कहा- -क्या यह भी कोई विद्या है, जो सीखनी पड़ेगी? "अवश्य।" "और उसका कालेज कहां है "खुला हुआ विश्व ही उसका कालेज है, आत्मवेदना और सहृदयता तथा स्थैर्य उसकी पाठ्य पुस्तकें है । जीवन के सम्मुख हठात् आ जानेवाली छोटी-बडी घटनाएं उसके पाठ हैं, जिन्हे मनुष्य को संयमपूर्वक पढना उचित है।" "यह खूब रही ! यह पाठ भी इसी तरह पढ़ा जाएगा, इसका तो कभी ख्याल भी नहीं किया था। अब कालेज छोड़ने और विद्यार्थी-जीवन को भूल जाने पर इस विस्तृत विश्व को किस तरह पढा जाए ! कोई जीता-जागता गुरु भी तो दृष्टि नहीं पड़ता।" १६५ 21