पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२०

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२० लालारुख और ज़री की पगड़ियां डाटे घोड़ों पर और पैदल इन्तजाम के लिए दौड़-धूप कर रहे थे। छज्जों और छतो पर लालारुख की सवारी देखने के लिए ठठ की ठठ औरतें आ जुटी थी। परदानशीन बड़े घर की औरतें चिलमनो की आड में खड़ी होकर लालारुख की सवारी देखने का इन्तजार कर रही थी। नजूमियो और ज्योतिषियों से लालारुख की विदाई का मुहूरत दिखा लिया गया था। ठीक मुहू- रत पर लालारुख की सवारी लालकिले से रवाना हुई। सबसे आगे शाही सवारों का एक दस्ता हाथ मे नंगी तलवारें लिए चल रहा था। उसके बाद जर्क-बर्क 'पोशाक पहने हाथ में बड़े-बडे भाले लिए, बरकंदाजों का एक झुड था। इसके बाद तातारी बांदियां तीर-कमान कसे और नंगी तलवार हाथ में लिए, जड़ाऊ कमर- पेटी मे खंजर खोसे, तीखी निगाहो से चारों तरफ देखती हुई आगे बढ़ रही थी। इसके बाद झूमते हुए शाही हाथी थे, जिनपर जरदोजी की सुनहरी झूलें पड़ी हुई थी, और जिनकी सोने की अम्बारियां सुनहरी धूप में चमचमा रही थी। इनमें महीन रेशमी जाली के पर्दे पड़े हुए थे, जिनमे शाहज़ादी लालारुख की सहेलिया, उस्तानियां, मुगलानियां और रिश्ते की दूसरी शाही औरतें थी। इनके पीछे नकीबों की एक फौज थी, जो चिल्ला-चिल्लाकर हुजूर शाहजादी की सवारी की आमद लोगों पर जाहिर कर रही थी। इसके बाद खास बादियो और महरियों के पैदल' झुरमुट में कीमती,जडाऊ सुखपाल में शाहजादी लालारुख बैठी थी। एक विश्वास- पात्री बांदी पीछे खड़ी शाहजादी पर धीरे-धीरे पंखा झल रही थी। सुखपाल पर गुलाबी रंग के निहायत खूबसूरत, मकड़ी के जाले की तरह महीन पर्दै पड़े हुए थे। इनके पीछे घोड़े पर सवार एक सरदार खोजा फिदाहुसेन था, और उसके पीछे मुगल सरदारो का एक मजबूत दस्ता। इसके बाद रसद, डेरे, तम्बू और बल्लियो से लदे हुए बहुत-से ऊंट, खच्चर, हाथी तथा बेलदार मजदूर चल रहे थे। , लालारुख का सौन्दर्य अप्रतिम था, और उसके कोमल तथा भावुक ख्यालातों की ख्याति देश-देशान्तरो तक फैल गई थी। देश-देशान्तरों के शाहजादे उसे एक बार देखने को तरसते थे। उसका रंग मोतियों के समान था। उसकी आभा और शरीर की कोमलती केले के नये पत्ते के समान थी। उसके दांत हीरे के से और आंखें कच्चे दूध के समान उज्ज्वल और निर्दोष थी। उसका भोलापन और सुकु- मारता अप्रतिम थी, और निर्मम आलमगीर, जो प्रेम की कोमलता से दूर रहा, 7