पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कन्यादान २१६ रुद्रचन्द्र विद्यालकार हैं । आपन इनका व्याख्यान तो सुना होगा, सभा को कम्पाय- मान कर देते हैं। शायद आप पिछले शास्त्रार्थ में न थे। इन्होने सनातनियो के दात खट्टे किए थे। मेरी तो इनसे पहले जान-पहचान न थी। ये स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज है, इन्होने अभी परिचय दिया। काता ने भी इन्हे पसन्द कर लिया है, मैने इन्हे वचन दे दिए। अब ये दोनो पडित स्त्री-पुरुप धर्म-प्रचार मे जीवन व्यतीत करेंगे।" देशराज हक्का-बक्का खड़े रहे। बड़ी देर तक उनके मुह से बात ही न निकली। कुछ ठहरकर वे कापते-कांपते बोल उठे-आप ऐसा नही कर सकते। यदि आप ऐसा करेंगे, तो मै आपको जान से मार डालूगा। ठेकेदार साहब के सामने ऐसी गुस्ताखी करनेवाला यही प्रथम व्यक्ति था। उन्होने एकदम खडे होकर कहा-निकल जाओ, इसी वक्त निकल जाओ! "निकलना क्या, मैं आपका खून पी जाऊगा।आपकोशर्म नही आती, जवानो को बुला-बुलाकर लड़की से मिलाते है, गाना सुनवाते है, सौदा पटाते है, और दूसरा अच्छा मिलने पर राय बदल देते है, यह क्या मजाक समझा है ?" "क्या मैंने तुमसे पक्का वादा किया था ? तुम भी सोच रहे थे, मैं भी सोच रहा था।" . "आपकी लड़की ने पक्का वादा किया था।" "मेरे सामने लड़की क्या कर सकती है ?" "लड़की बालिग है ! वह अपना लाभ-हानि सोच सकती है। आपका फले उसके इच्छानुसार काम करने का है, न कि अपनी मनमानी करना।" "मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं।" "मैं अभी आपकी लड़की से पूछना चाहता हूं।" "तुम उससे नहीं मिल सकते।" "उससे मिलने की मुझे जरा भी इच्छा न थी, आपने ही मिलाया था, अब मै उससे अवश्य मिलूगा।" "यह हो नहीं सकता।" "आप रोक नहीं सकते।' युवक देशराज तीर की भाति बाहर निकल गया।