पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२१९

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कन्यादान २२३ 5 आपने इन पत्रों को देखकर भी अपना मत नहीं बदला।" "नही, मैंने तो मत नहीं बदला।" "क्या वह आपसे प्रेम करती है ?" "विवाह होने पर स्वयं करेगी।" "आप उससे प्रेम करते है ?" "मुझे करना पड़ेगा।" "यदि वह न करे?" "यह उसके लिए पातक है।" "यह क्यों ?" "पति की मन, वचन, कर्म से उसे विश्वासिनी होना चाहिए। पर-पुरुष का ध्यान उसे न करना चाहिए।" "तब, जब कि उसने पति को स्वेच्छा से चुना हो।" "स्त्रिया कभी स्वतन्त्र नही हो सकती। मनुस्मृति में लिखा है-न स्त्री स्वात- त्र्यमर्हति ।" "और वेद में लिखा है-ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम् ।" "खैर, मैं आपसे इस विषय पर बहस नही किया चाहता।" "तो आप उस स्त्री से विवाह करने को राजी हैं, जो अन्य व्यक्ति से प्रेम करती है ?" "इसके लिए आपके सम्मुख मै जवाबदेह नहीं।" "आप शायद तभी ऐसी विधवाओ से भी विवाह आसानी से कर लेते है, जिनके तीन बच्चे हो गए हों या जिन्होने पति को त्याग दिया हो।" युवक देशराज घृणापूर्वक एक बार स्नातक महाशय को देखकर तेजा से चला गया। "जल्दी कहो, क्या कहना है ? माताजी कही देख न ले।" "क्या उन्होने कभी देखा नही है ?" "पर तब मे और अब मे भेद हो गया है।" "क्या भेद है ?" "आपको सब मालूम है।"