पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२४ कन्यादान मै कर लूगा "तुम्हारे दिल में भी भेद हो गया है ?" "मैं क्या कर सकती है? "तुम एक बार कह दो कि मैं इस विवाह को पसन्द नही करती। बाकी काम ," "यह नहीं हो सकता। मैं पिता के विरुद्ध कुछ भी नही कर सकती।" "उस सूखे-रूखे गुरुकुल के मूढ़ के पल्ले पड़ोगी ?" "ईश्वर की जो इच्छा।" "ईश्वर इसमें क्या करेगा?" "मै ही क्या कर सकती हूं?" "तुम कहभर दो। फिर मैं देख लूगा " "यह मुझसे न होगा।" "तब तुम उसे ही चाहती हो?" "इस चर्चा को न छेड़ो।" "क्यो न छेड़ , मैं तो बर्बाद हुआ, यार लोग आबाद हुए "आपको विवाह की क्या कमी है, जो इतना गिरकर उनके पीछे पड़ते हो ?" युवक ने देखा, कान्ता का स्वर बदल गया है। वह भीतर छिपे प्रेम को देख- कर बोला-कान्ता, तुम्हारे लिए मैंने एक परम सुन्दरी लड़की ठुकरा दी। "ईश्वर इसका तुम्हे बदेला देगा।" “पर तुम पराई हो जाओगी ?" • "मैं कुछ भी नहीं कर सकती, जो भाग्य में होगा, भोगूगी। पर मैंने सुना है, आपने मेरे पत्र उन्हे दिखाए थे, यह सच है ?" "सच है।" कान्ता चुप रही। फिर वह रोने लगी। रोकर उसने कहा--पुरुष ऐसे ही प्रेमी होते है ? क्यो? युवक लज्जित हुआ। पर उसने कहा-मेरे कलेजे में आग जल रही है। "सिर्फ तुम्हारे कलेजे मे ही ?" ?" "अच्छी बात है, अब जाओ। उन खतो का क्या करोगे?" "अदालत मे दावा दायर करूंगा।" 7 "और की मै क्या जानू