पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२२९

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२३४ बाहर-भीतर की भाति ऊषा की ओर दौडा। मैंने कहा- ऊषा, मेरी रानी, मेरी मालकिन, नुमने मेरा जीवन सफल कर दिया ! ऊषा ने धीरे से कहा-इन तीन वर्षों में यही कर सकी। उसका स्वर काप रहा था । दूसरे ही क्षण हम दोनो एक थे । हम लोग प्रेमी ही नही, गम्मीर दम्पति है। हमारे प्राणो से प्राण और शरीर से शरीर घुलकर एक हो गए है । हम भीतर तक स्त्रीत्व और पुरुषत्व को देख चुके है, बाहर के लिए हम अधेड़ है।