पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२३६

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विधवाश्रम २४१ 6 साडी पसन्द करती हो, रेशमी कोर कीन?" "जी, जैसी मिल जाए।" "जैसी चाहोगी वैसी ही मिल जाएगी! खैर,तुम्हे कुछ जेब-खर्च भी चाहिए?" "जी नही, मेरे पास कुछ रुपये है।" "अच्छी बात है । हां, एक बात-यहां जेवर पहनने का नियम नहीं है ! तुम्हारे गहने सब कोष मे जमा होगे।" "कोष क्या है ?" "आश्रम का कोष-यानी खजाना। जब तुम्हारा विवाह होगा, तब वापस दे दिए जाएगे।" "मगर मै विवाह तो कराने की इच्छा ही नहीं करती।" "यह कैसी बात है ? फिर यहां आई क्यों हो?" "मैं तो विद्या पढ़कर केवल अपना धर्म सुधारना चाहती हूं।" "परन्तु जवान लड़कियो का धर्म सिर्फ विद्या से ही नही बचता।" "तब?" । "उन्हे ब्याह करना चाहिए।" "ब्याह तो एक बार हो चुका, वही तकदीर मे होता तो तकदीर क्यो फूटती?" "यह ससार के कारखाने हैं, सब दिन एक-से नहीं रहते। कहा है, बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेहु ।" "मै तो विद्या पढने ही आई हूँ।" "विवाह कराके विद्या भी पढना।" "विवाह कराना मैं नहीं चाहती।" "तुम्हे अवश्य विवाह कराना चाहिए।" "मै धर्म-काज मे जीवन व्यतीत करना चाहती हू "तुम्हारा विवाह किसी धर्मोपदेशक से करा दिया जाएगा।" "पर यह मुझे पसन्द नही, मुझे विवाह से घृणा है।" "यह तुम्हारी नादानी है।" "आप मेरे पढ़ने-लिखने का बन्दोबस्त कर दे।" "परन्तु यह विधवाश्रम है, कोई कन्या पाठशाला नहीं।" "आपने लिखा था कि पढ़ने का प्रबन्ध हो जाएगा।"