पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२३७

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२४२ विधवाश्रम "पर विवाह के बाद।" "विवाह के बाद आप क्या यहां रख सकेगे?" "यहा रखने ही से क्या, जो विवाह करेगा वह पढ़ाएगा।" "और यदि मैं विवाह न करू ?" "अवश्य करना पडेगा।" "मै विवाह नही करूगी।" "कह चुका, अवश्य करना पडेगा।" "तब मुझे चली जाने दीजिए, मैं यहा न रहूगी।" "यह भी असम्भव है।" "असम्भव क्यो?" "नियम है।" "यह तो धीगामुश्ती है।" "तुम चाहे जो कुछ समझो।" "मैं यहा एक मिनट भी नही रह सकती।" "तुम यहा से जा नही सकती।" "देखू कौन रोकता है ?" डाक्टर ने सकेत किया । गजपति और जगन्नाथ अधिष्ठात्री देवी के साथ आ हाजिर हुए। डाक्टर ने कहा-इस बेवकूफ को समझाकर राजी करो। -औरवे चले गए। T युवती जबरदस्ती बाहर जाने लगी। गजपति ने कहा-जोर क्यो करती हो, जोर हममे भी है। बात समझो- समझाओ, ज़ोर से कुछ नहीं बनेगा। "मैं कुछ नही सुनती, मैं अभी जाऊगी।" "जा नहीं सकती।" "क्या मैं कैदी ह ?" "जो कुछ समझो।" "तुम सब लोग एक ही से पिशाच हो, धर्म की टट्टी मे शिकार खेलते हो।" "जो जी में आए सो बको।" "क्या तुम जबरदस्ती शादी करना चाहते हो?" .