पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२५

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लालारुख २५ फैल गई । शाहजादी ने सुना तो पागल हो गई। खाना-पीना छोड दिया। सवारी तेजी के साथ आगे बढ़ने लगी। ज्यों-ज्यो कश्मीर नजदीक आता था, सजावट और स्वागत की धूमधाम बढ़ती जाती थी। परन्तु शाहजादी बदहवास' की। शहर में उसका बडी धूमधाम से स्वागत हुआ। और जब महल के फाटक मे उसकी सवारी घुसी तो उसपर हीरे-मोती बखेरे गए । शाहजादी ने पक्का इरादा कर लिया था कि ज्योही वह शाहजादे के सामने पहुचेगी, उसके कदमो पर गिरकर इब्राहीम की जानबख्शी की भीख मागेगी। शाहजादा जडाऊ तख्त पर बैठा शाहजादी के स्वागत करने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसके बगल मे एक दूसरा जड़ाऊ तख्त शाहजादा के लिए पड़ा था। शाहजादी ने ज्योही हवादान से पैर निकाला, शाहजादा उसे देखकर अवाक् रह गया। बिखरे बाल, मलिन वेश, सूखा और पीला चेहरा और सूजी हुई आखें। शाहजादी ने आख उठाकर शाहजादे को नहीं देखा। वह आगे बढ़कर तख्त के नीचे जमीन पर लोट गई। उसने शाहजादे के पैर पकड़कर कहा-क्षमा, क्षमा, ओ उदार शाहजादे, क्षमा। शाहजादे ने कहा-उठो शाहज़ादी, तुम्हारे लिए सब कुछ किया जा सकता है, यह तुम्हारा तख्त है, इसपर बैठो। शाहजादी ने डरते-डरते आंखे उठाकर शाहजादे की ओर देखा। 'या खुदा' इतना ही उसके मुह से निकला, और वह शाहजादे की गोद मे बेहोश होकर लुढक गई। - "हां, तो तुम इब्राहीम की जा बख्शी चाहती हो प्यारी ?" "हां प्यारे, तुम इब्राहीम को जानते हो ?" दोनों ठहाका मारकर हंस पड़े । लालारुख ने शाहजादे की गोद में मुह छिपा लिया।