पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२५२

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विधवाश्रम २५७ "पर यहां के हालात बडे गन्देन्थे । खुला व्यभिचार होता था। पुलिसवाले आते और उन्हे लडकिया रात-भर को सौप दी जाती थीं। एक बार पुलिस इन्स- पेक्टर को मेरे कमरे मे भेज दिया। मैं भय से थर-थर कांपने लगी। पेशाब का बहाना कर छत पर से कूदकर भागी। कुछ देर तो जमुना किनारे घाट पर छिपी रही, पीछे स्टेशन पर आई। वहां यह आदमी गजपति मुझे मिला । इसने मेरी सब कहानी सुनकर कहा कि तेरे बाप को मैं जानता हू । चल मैं तुझे वहा पहुंचा दूं। यह मुझे दिल्ली ले आया और यहा आश्रम में रख दिया। "यहा भी वही हाल देखा । पर इस बार मैं अपने को न बचा सकी । इस गज- पति ने मेरा धर्म बिगाड़ दिया। यह रात-दिन वहीं रहता है और बिना इसकी इच्छा पूरी किए कोई लड़की अपनी इच्छानुसार काम नहीं कर सकती। यह बडा निठुर नर-पशु है, नित्य ही दो-चार शिकार पकड लाता है । डाक्टर बूढा घाघ है, बेटी- बेटी करके ही सब कुकर्म करता है । उस दिन मुझसे कहा कि मेरे यहा रोटी पकाने के लिए आ जाना । जब गई तो बुरी-बुरी बातें कहने लगा। मैं वहा से अकेली ही भाग आई। अधिष्ठात्री देवी उनकी पुरानी चुडैल हैं । उन्होने सब्ज़ बाग दिखाकर मुझे शादी करने को लाचार कर लिया। मैं राजी हो गई। गहने, कपड़े, रुपये मिलने की आशा थी। वह आदमी मेरठ के पास किसी देहात का बनिया था। लोहे का काम करता था। उसकी औरत मर चुकी थी और उसे गर्मी की बीमारी हो गई थी। मुझे उससे बड़ी घृणा थी। पर वह मेरी बडी आवभगत करता था। यह बात तय हो गई थी कि गजपति अमुक दिन वहां जाएगा और मौका पाकर उड़ा लाएगा। यही हुआ, और फिर मै यहा लाई गई। वह भी आया। झगड़ा हुआ तो उसे डरा दिया कि तुमने लडकी को मार डालने की कोशिश की है, तुमपर फौजदारी चलेगी। बेचारा भाग गया। 'फिर दूसरी जगह मेरा ब्याह कर दिया गया। और वहां से भी उसी भांति भगा लाई गई। परं इस बार जिससे ब्याह हुआ था, वह आदमी मुझे पसन्द था; पर ये लोग जबरदस्ती ले आए। मैंने अपने गहने, कपड़े, रुपये मांगे और पति के पास जाना चाहा तो इन्होने मुझे मारा और बन्द कर दिया। छह दिन से मैं बन्द हूं। गजपति रोज रात को मेरा धर्म नष्ट करता है, उससे मेरी पार नही बसाता।' मैजिस्ट्रेट ने पूछा-तुम्हारे गहने, कपड़े, रुपये कहां हैं ? चम्पा-हुजूर, इन्हीके पास हैं। 66