पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२५५

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२६० विधवाश्रम पतिता स्त्रियो से पड़ना बहुत कुछ स्वाभाविक है और उनके साथ थोडा अनैतिक व्यवहार होना भी असम्भव नही। विधवाओं के विवाह की उपयोगिता का कौन बुद्धिमान समर्थन नहीं करेगा ! परन्तु अच्छी-बुरी सभी स्त्रियो को अवैध उपायो से फुसलाकर इकट्ठा करना, उनके आचरण सुधारने तथा उन्हे शिक्षिता करने का कोई उद्योग न करके, रुपया लेकर लोगो को बेच देना, यही नहीं, उन्हे फुसलाकर वापस बुलाना और दुबारा-तिबारा बेचना भयानक अपराध और जघन्य पाप है, खास कर जब वह ऐसे आदमियो के द्वारा किया जाए, जिनपर जनता. विश्वास करती और सत्पुरुष समझती है ! यह सम्भव है कि सस्था को गुण्डो और दुष्ट स्त्रियो से साबका पड़ता रहे, पर यह उचित नहीं कि वह गुण्डो के हाथ मे आश्रम को सौप दे, गुण्डों को अधिकारी बनाए। अभियुक्तो पर जो आरोप प्रमाणित हुए हैं वे संगीन हैं और ऐसे आदमी समाज के लिए बहुत भयानक है। मैं इन्हे इनकी दुष्टता के लिए डाक्टर सुखदयाल को दो वर्ष और अन्य लोगो को नौ-नौ मास का सपरिश्रम कारावास की सज़ा देता हू।" दण्डाज्ञा सुनते ही डाक्टर साहब तो उसी भाति टेढ़ी गर्दन करके और बूढ़े बकरे की भाति दांत निकालकर हस दिए। परन्तु अधिष्ठात्री जी धाड़ मारकर रो दी। गजपति भी गुस्से से होठ चबाने और गालियां बकने लगा। पुलिस ने सबको पकड-पकड़कर सीखचो मे बन्द कर दिया ! और तीनों स्त्रिया मय अपने सामान के स्वाधीन हो और एक बार 'पिताजी नमस्ते' का व्यग्य करके अपनी राह लगी!