पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२८

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२८ बाचिन का हुक्म दिया। क्षण-भर में पालकी फिर अपनी राह लगी। चिराग जल चुके थे। दीवाने-खास में हजारा फानूस की तमाम काफूरी मोम- बत्तिया जल रही थी । जमुना की लहरो से धुलकर पूर्वी हवा झरोखों से छन-छन- कर आ रही थी। खास-खास दरबारी बादशाह सलामत के तशरीफ लाने की इन्तज़ारी में अदब से खडे थे। सामने एक चौकी पर वही युवक लहू-लुहान पड़ा था । अन्त पुर के झरोखों से परिचारिकाओं के कण्ठ-स्वर ने कहा-होशियार, अदब कायदा निगहदार ! यह शब्द-स्वर चोबदारोने दोहराया-होशियार अदब कायदा निगहदार ! उमराव-मण्डल और मन्त्रि-मण्डल जमीन तक सिर झुकाकर खड़ा हो गया। सम्पूर्ण दरबार मे निस्तब्धता छा गई। धीरे-धीरे वृद्ध सम्राट बहादुरशाह दो सुन्दरियों के कन्धों का सहारा लिए भीतरी ड्योढ़ी से निकलकर सिंहासन पर आ बैठे। चार बादिया मोरछल लेकर बगल मे खड़ी हुईं। चोबदार ने पुकारा-जल्ले इलाही बरामद कर्द मुजरा अदब से ! यह सुनते ही एक उमराव सहमा हुआ अपने स्थान से आगे बढा और सम्राट के सामने जाकर उसने तीन बार झुककर सलाम किया। चोबदार ने उसके रुतबे और शान के अनुसार कुछ शब्द कहकर सम्राट का ध्यान उधर आकर्षित किया। इसी प्रकार सभी सरदारो ने प्रणाम किया। इसके बाद बादशाह ने वजीर को संकेत किया। वजीर ने जवान से कहा- जवान ! तुम्हारे हालात बादशाह सलामत अगर्ने सुन चुके हैं, मगर तुम्हारी खास जबान से सुनना चाहते है। तमाम हालात मुफस्सिल मे बयान करो। युवक ने जमीन मे लोट-लोटकर सब मामला बयान किया । बादशाह ने फर- माया-सब हरूफ-बहरूफ सही है । कहा है वह जालिम जमीर ? ज़मीर तख्त के सामने आकर घुटनो के बल गिर गया। बादशाह ने फर्माया-जमीर ! तुझे कुछ कहना है ? "खुदावन्द ! रहम ! रहम !" बादशाह ने हुक्म दिया-इस जालिम को सीधा खड़ा करो। मगर ठहरो, मैं इसपर भी रहम किया चाहता हूँ । इसे नौकरी से बरखास्त किया जाता और इसका दर्जा इस नौजवान को अता किया जाता है। इसकी तमाम जायदाद जन्त की जाती है और वह उस कहार के घरवालों को बख्श दी जाती है।